मेरा एक सुधी मित्र
मेरा एक सुधी मित्र
क्यों मेरी कब्र में कील ठोकने पर उतारू है...
अभी तक नहीं समझ सका हूं मैं...
मेरे सभी वाक्यों पर क्यों
अपने दीपक का प्रकाश जलाना चाहता है
क्यों मेरा परिचय
हर जगह फैलाना चाहता है
जाने क्यूं...
पर इतना अवश्य
मित्र है ना...
तो क्या
कंधा देने को इतना उतारू है...
मेरे शब्द बाणों का प्रसारू है...
जानता हूं मैं
तस्लीमा अच्छा लिखती है
पर बार-बार क्यों मुझे याद दिलाता है
क्यों प्रत्येक शब्द को
जान-पहचान वालियों से मिलवाता है
क्यों किराए के थर्मामीटर से
मेरा बुखार नपवाता है
मेरे जनाजे में जाने क्यों
भीड़ बढ़ाना चाहता है...
क्यों मेरे शब्दों की भंगिमा
आलोचकों को बताना चाहता है
क्यों हर बेगानी शादी में
मेरा ही बैंड बजाना चाहता है
मान लिया मित्र है मेरा,
मेरे क्रियाक्रम में पहला हक उसी का है,
पर क्यों वो इस कर्म के लिए लालायित है
फिर भी मेरा सुधी मित्र मेरे साथ है...
कल गर विज्ञापन कहीं छप जाए,
शर्मा जी नहीं रहे,
तो स्वयं ही मान लीजिए,
तीये की बैठक में वही दो हाथ हैं...
लेकिन अच्छा है
मेरा ही तो मित्र है
बहुत जुझारू है...
मेरा एक सुधी मित्र
क्यों मेरी कब्र में कील ठोकने पर उतारू है...
आपने ऊपर की लाइनें तो पूरी पढ़ लीं लेकिन यह नहीं सोचा कि `कील´ हमेशा `ताबूत´ में ठोकी जाती है, कब्र में नहीं।
क्यों मेरी कब्र में कील ठोकने पर उतारू है...
अभी तक नहीं समझ सका हूं मैं...
मेरे सभी वाक्यों पर क्यों
अपने दीपक का प्रकाश जलाना चाहता है
क्यों मेरा परिचय
हर जगह फैलाना चाहता है
जाने क्यूं...
पर इतना अवश्य
मित्र है ना...
तो क्या
कंधा देने को इतना उतारू है...
मेरे शब्द बाणों का प्रसारू है...
जानता हूं मैं
तस्लीमा अच्छा लिखती है
पर बार-बार क्यों मुझे याद दिलाता है
क्यों प्रत्येक शब्द को
जान-पहचान वालियों से मिलवाता है
क्यों किराए के थर्मामीटर से
मेरा बुखार नपवाता है
मेरे जनाजे में जाने क्यों
भीड़ बढ़ाना चाहता है...
क्यों मेरे शब्दों की भंगिमा
आलोचकों को बताना चाहता है
क्यों हर बेगानी शादी में
मेरा ही बैंड बजाना चाहता है
मान लिया मित्र है मेरा,
मेरे क्रियाक्रम में पहला हक उसी का है,
पर क्यों वो इस कर्म के लिए लालायित है
फिर भी मेरा सुधी मित्र मेरे साथ है...
कल गर विज्ञापन कहीं छप जाए,
शर्मा जी नहीं रहे,
तो स्वयं ही मान लीजिए,
तीये की बैठक में वही दो हाथ हैं...
लेकिन अच्छा है
मेरा ही तो मित्र है
बहुत जुझारू है...
मेरा एक सुधी मित्र
क्यों मेरी कब्र में कील ठोकने पर उतारू है...
आपने ऊपर की लाइनें तो पूरी पढ़ लीं लेकिन यह नहीं सोचा कि `कील´ हमेशा `ताबूत´ में ठोकी जाती है, कब्र में नहीं।