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Seedhe Saral Anna |
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Drama Queen Kiran Bedi |
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Anna supporter protest out of Parliament |
अन्ना जी, सादर प्रणाम,
लाखों भारतवासियों की तरह मैं भी आपका समर्थक हूं। मैं पहले दिन से ही आपके आंदोलन के पक्ष में था। 16 तारीख को जब सरकार ने आपको घर से गिरफ्तार कर लिया था, मुझे भी बहुत पीड़ा हुई, गुस्सा आया था। जिस दिन कांग्रेसी मनीष तिवारी ने आप पर भ्रष्टता का आरोप लगाया था, हमें फिर गुस्सा आया था। मैंने नहीं किया, पर हम जैसे लोगों के आंदोलन ने ही आपको जेल से बाहर निकालने में सरकार पर दबाव बनाया था। आप साफ और सही थे, सिर्फ इसीलिए। नहीं तो हम बाबा रामदेव के लिए तो सड़कों पर नहीं उतरे थे। अभी तक पूरे देशभर में आपकी लहर थी। आपका आंदोलन बिल्कुल सटीक चल रहा था। पर अंत में आकर आप क्यों राह से भटक रहे हैं। सरकार तो हमेशा से निकम्मी रही ही है। पिछले कुछ महीनों में उसने आमजन की उम्मीदों पर बहुत अधिक ही पानी फेरा है। हमारी आपमें एक उम्मीद जगी थी, जो इतने दिनों से लगातार बढ़ रही थी, लेकिन पिछले दो दिनों से उसमें बढ़ोतरी रुकती सी जा रही है। आप गांधीवादी हैं, तो क्यों ब्लैकमेलिंग पर उतरना चाहते हैं। पूरा विश्व जानता है कि भारत एक सफल लोकतंत्र है। आपकी इस जनक्रांति की वजह से हमारे लोकतंत्र पर सवाल उठने शुरू हुए। मैं इसके विरोध में नहीं हूं, कि जनक्रांति क्यों कर दी? तानाशाह बनते जा रहे नेताओं को बताना जरूरी था, कि जनता क्या है... पर अब बता तो दिया... अब क्यों जिद पर अड़े हो। आप कहते हो लोकतंत्र है, तो जनता की क्यों नहीं सुनते। जनता जरूर सुनाएगी, जनता जाग गई है, पर क्या सारा सिस्टम एक ही दिन में बदल देना उचित रहेगा। और अगर उचित हो भी तो क्या बदल पाएंगे, यह सवाल महत्वपूर्ण है। आपका कहना कि लोकपाल लाओ। अब लाएगी ना सरकार, उसे जनता की ताकत मालूम चल गई है। लेकिन सिविल सोसायटी का बनाया हुआ लोकपाल ही लाओ, यह कहां का गांधीवाद हुआ। और 30 अगस्त तक लाओ, यह तो सरासर ब्लैकमेलिंग ही हुई ना? सरकार दोगली नीतियों पर चल रही है। रोज यू-टर्न ले रही है। पर लोकपाल बिल पर संसद में चर्चा को तैयार हो गई, यह क्या कम है। यही तो था आंदोलन का उद्देश्य। माना पहला ही कदम है, पर उठ तो गया है। अब उसे रोकना नामुमकिन होगा। अब इसे अपने सिस्टम से होने दें। संसद सर्वोपरि है, उस पर उंगली ना उठाएं। हर चीज की एक प्रक्रिया होती है। आपके सपोर्टर पीएम के घर के आगे पहुंच गए। आप कहते हैं कि पीएम को हमने चुना। हम मानते हैं हमने चुना। पर कैसे? पीएम के लिए वोटिंग तो आपने या मैंने नहीं की थी। मैंने और आपने अपने प्रतिनिधि को चुना। उस प्रतिनिधि ने अपने प्रतिनिधि को चुना, उसे प्रधानमंत्री बना दिया। हम अपने प्रतिनिधि से जवाब तलब करेंगेे। हमें पीएम से भी जवाबतलब का अधिकार है, पर उसके पद की गरिमा का ध्यान भी रखना होगा। हमारे एक सांसद के घर दस लोग घुस भी जाएं, तो कोई अधिक फर्क नहीं पड़ेगा। पर यदि पीएम के घर में, संसद में घुस गए, तो सीमाएं तो टूट ही जाएंगी। आज आप घुस रहे हो, कल कोई और घुसने लगेगा। आपको नहीं लगता, गलत है। आपके सहयोगी मंच से बार-बार सरकार को सदबुद्धि की बात कर रहे हैं, लेकिन मुझे लगता है कि अब दोनों पक्षों को ही सदबुद्धि की जरूरत है। आप बिल्कुल भोले हैं, आपके साथ की टीम में धुरंधर बैठे हैं। आप भूखे मरते जा रहे हैं, सारे दिन टीवी पर चमकते वे सब हैं। उनका कहना है कि आप उनके पिता समान हो। देश के दूसरे गांधी हो जोकि मैं भी मानता हूं, लेकिन फिर भी आपको ग्यारह दिन से भूखा रखकर स्वयं भरपेट भोजन कर रहे हैं। क्यों ना एक समय का खाना खुद भी त्याग दें। आपको क्या उनकी इसी बात से समझ में नहीं आ रहा कि ये लोग भी आपके साथ खेल रहे हैं। अगर ऐसा नहीं है, तो आपको भूखा रखकर इनके पेट में अनाज कैसे पच रहा है, मुझे समझ नहीं आ रहा। अन्ना जी, अब अपना हठ छोड़कर बातचीत के मसले पर आइये। सरकार की गरिमा का खयाल रखना होगा आपको। सरकार फिर भी आपके पास आ रही है। कुछ नाकारा लोग हैं, जो इस आंदोलन को सफल नहीं होने देना चाहते, पर बहुत सारे ऐसे लोग भी हैं, जिनको लोकपाल चाहिए है। संसद की गरिमा को देखते हुए आपको विवेक से काम लेना होगा। आप संसद को दरकिनार करके स्वयं तो कानून नहीं बना सकते ना? इतना दबाव सरकार समझ चुकी है। करवा तो रही है चर्चा। कह दीजिए उनसे कि हमारे यह सुझाव हैं। उन पर पहले सर्वसम्मति से चर्चा कीजिए। और अनशन त्याग दीजिए। अनशन तोडऩे से हमारी हार नहीं होने वाली। आप और जनता तो जीत चुकी है। और अंत में सिर्फ इतना ही कि आजादी के बाद पहली बार कोई जन नेता देश को मिला है। आज पूरे देश में यही गूंज है- मैं भी अन्ना- तू भी अन्ना। लेकिन मुझे सरल अन्ना पसंद है, इसे हठी अन्ना न बनने दें। धन्यवाद।