हमारी हवेली


अलसीसर स्थित हमारी हवेली। इस बार अक्टूबर में जब वहां जाना हुआ, तो देखकर बचपन के दिन याद आ गए। यहां नानाजी-नानीजी, मामाजी आदि का पूरा परिवार रहता था। मम्मी का बचपन भी यहीं गुजरा। अब नानाजी रहे नहीं, एक मामाजी झुंझुनूं में है। बस दूसरे मामा और मामी ही यहां रहते हैं। इसके पास ही राजा का गढ़ था। अब इस पर फाइव स्टार होटल बना दिया गया है। विदेशी सैलानी खूब आते हैं। पर लोग भी भी वही है। बाजार में पान की दुकान वहीं पर है, जहां दस साल पहले देखी थी। गांव थोड़ा विकसित अवश्य हुआ है, पर पर्यटन से जो पैसा आता है, वह गांव के विकास पर तो नहीं लगा, यह स्पष्ट दिखाई देता है।