मैं भारत कि तस्वीर हूँ...

मेरा परिचय इतना कि मैं भारत की तस्वीर हूं,
मातृभूमि पर मिटने वाले मतवालों की पीर हूं।

उन वीरों की दुहिता हूं, जो हंस-हंस झूला झूल गए,
उन शेरों की माता हूं, जो रण प्रांगण में जूझ गए,
मैं जीजा की अमर सहेली, पन्ना की प्रतिछाया हूं,
हारी की हूं अमिट निशानी, मैं जसवंत की माया हूं,
कृष्णा के कुल की मर्यादा, लक्ष्मी की शमशीर हूं।
मेरा परिचय इतना कि मैं...

हल्दी घाटी की रज का सिंदूर लगाया करती हूं,
अरे शौर्य की लाली से मैं पांव रचाया करती हूं,
पद्मावत हूं रत्नसिंह की, चूड़ावत की सेनानी,
मैं जौहर की भीषण जवाला, रणचंडी हूं पाषाणी,
मां की ममता, नेह बहन का, और पत्नी का धीर हूं।
मेरा परिचय इतना कि मैं...

कालीदास का अमर काव्य हूं, मैं तुलसी की रामायण,
अमृतवाणी हूं गीता की, घर-घर होता पारायण,
मैं शिवा की भीषण भाभिनी, आला का हुंकारा हूं,
सूरदास का मधुर काव्य मैं, मीरा का इकतारा हूं,
वरदायी की अमर कथा हूं, रणदायी गंभीर हूं।
मेरा परिचय इतना कि मैं...

- साधी ऋतम्भरा

(आप सोच रहे होंगे कि मेरे ब्लॉग में ये `मैं भारत की तस्वीर हूं´ कैसे हो गया। साध्वी ऋतम्भरा के गंगानगर में प्रवचन के दौरान मैंने यह कविता सुनी। मुझे इतनी अच्छी लगी कि मैंने हाथों-हाथ कलम उठाई और साथ-साथ ही यह लिख्ा ली। एक नारी क्या है, इसको कोई भी इस काव्य से अधिक अच्छी तरह से कौन समझा सकता है।)