एक खत सिर्फ डेली न्यूज स्टाफ के लिए...
दुनिया भर की यादें मुझसे मिलने आती हैं, 
शाम ढले मेरे सूने घर में मेला लगता है...
चार दिन से जिंदगी जैसे परेशान सी हो उठी है। बैठे-बैठे वापस उसी पुरानी जगह लौट जाने का मन करता है। बड़ी जगह और बड़े शहर का उल्लास कभी मन से दूर नहीं हो सकता, पर जिंदगी के उन खूबसूरत पलों को याद कर वापस वहीं पहुंच जाने का दिल को पूरा अख्तियार है। अभी चंद रोज पहले भी तो दिल्ली आते वक्त दिल ने बस पर चढ़ने से मना किया था। घर वालों से ज्यादा इन घर वालों को छोड़ने का गम था। दस्तूर है कि एक जाता है, दूसरा चला आता है। समय के साथ पुराना धुंधला हो जाता है। पर उस धुंधलके में भी कहीं ना कहीं कोई तस्वीर जरूर बाकी रह जाती है।
आते समय आशुजी और प्रीत को कहा 'आई लव यू' लाखों गीताओं से भी अधिक पाक था। गंगानगरी दीपू का अहसान शायद ही कोई उतार पाएगा। उसका कहना कि भैया आपके बिना मन नहीं लगेगा, शायद मेरा यहां मन नहीं लगने का एक कारण हो। शायद मेरी उतनी अहमियत नहीं हो, जितनी वहां से आते समय मेरे वरिष्ठों और संपादक जी ने मुझे याद दिलाई। मेरे बॉस का मुझसे गले मिलना विदाई का अब तक का सबसे बड़ा उपहार होगा, मेरा मन कहता है।
कई चीजें हैं, जो याद दिलाती हैं कि हम जो हैं, वो क्यों हैं? रोज की तरह पाचक आंवला और गुलकंद की टॉफी के लिए जी आज शाम को भी मचला है। अकेले मूंगफली खाने का मन भी नहीं किया, शायद कोई मुझे याद कर रहा हो। एक सहकर्मी जो दिल्ली से नोएडा सिर्फ मुझे छोड़ने आया, और अपने ही मित्र के ठहरवाकर बिना बैठे फिर दिल्ली के लिए रवाना हो गया, यह क्या है, मैं समझ नहीं पाया। दूसरे, तीसरे और चौथे सहकर्मी ने भी अपने संपर्कों से मुझे सहूलियतें दिलवायीं।
सबकी याद आती है, वो एक पुराना मित्र जिसके ओरकुट प्रोफाइल पर 'कबाड़ी' का स्क्रैप छोड़ देने के बाद से ही बातचीत बंद थी, हाथ मिलाकर अलविदा कहना अच्छा लगा। एक सहकर्मी जिसके बारे में ब्लॉग पर हंसी-हंसी में लिखे गए कुछ शब्द बीच में दीवार बनकर खड़े थे, धड़धड़ाकर गिरते दिखाई पड़े। अंत में सिर्फ इतना ही कि समय आगे बढ़ने से पहले पुराने को मिटाते हुए चलता है, लेकिन आप का साथ हमेशा याद रहेगा... आप सब लोगों के साथ किया गया काम जीवन का सबसे सुखद अनुभव था।

शाम ढले मेरे सूने घर में मेला लगता है...
चार दिन से जिंदगी जैसे परेशान सी हो उठी है। बैठे-बैठे वापस उसी पुरानी जगह लौट जाने का मन करता है। बड़ी जगह और बड़े शहर का उल्लास कभी मन से दूर नहीं हो सकता, पर जिंदगी के उन खूबसूरत पलों को याद कर वापस वहीं पहुंच जाने का दिल को पूरा अख्तियार है। अभी चंद रोज पहले भी तो दिल्ली आते वक्त दिल ने बस पर चढ़ने से मना किया था। घर वालों से ज्यादा इन घर वालों को छोड़ने का गम था। दस्तूर है कि एक जाता है, दूसरा चला आता है। समय के साथ पुराना धुंधला हो जाता है। पर उस धुंधलके में भी कहीं ना कहीं कोई तस्वीर जरूर बाकी रह जाती है।
आते समय आशुजी और प्रीत को कहा 'आई लव यू' लाखों गीताओं से भी अधिक पाक था। गंगानगरी दीपू का अहसान शायद ही कोई उतार पाएगा। उसका कहना कि भैया आपके बिना मन नहीं लगेगा, शायद मेरा यहां मन नहीं लगने का एक कारण हो। शायद मेरी उतनी अहमियत नहीं हो, जितनी वहां से आते समय मेरे वरिष्ठों और संपादक जी ने मुझे याद दिलाई। मेरे बॉस का मुझसे गले मिलना विदाई का अब तक का सबसे बड़ा उपहार होगा, मेरा मन कहता है।
कई चीजें हैं, जो याद दिलाती हैं कि हम जो हैं, वो क्यों हैं? रोज की तरह पाचक आंवला और गुलकंद की टॉफी के लिए जी आज शाम को भी मचला है। अकेले मूंगफली खाने का मन भी नहीं किया, शायद कोई मुझे याद कर रहा हो। एक सहकर्मी जो दिल्ली से नोएडा सिर्फ मुझे छोड़ने आया, और अपने ही मित्र के ठहरवाकर बिना बैठे फिर दिल्ली के लिए रवाना हो गया, यह क्या है, मैं समझ नहीं पाया। दूसरे, तीसरे और चौथे सहकर्मी ने भी अपने संपर्कों से मुझे सहूलियतें दिलवायीं।
सबकी याद आती है, वो एक पुराना मित्र जिसके ओरकुट प्रोफाइल पर 'कबाड़ी' का स्क्रैप छोड़ देने के बाद से ही बातचीत बंद थी, हाथ मिलाकर अलविदा कहना अच्छा लगा। एक सहकर्मी जिसके बारे में ब्लॉग पर हंसी-हंसी में लिखे गए कुछ शब्द बीच में दीवार बनकर खड़े थे, धड़धड़ाकर गिरते दिखाई पड़े। अंत में सिर्फ इतना ही कि समय आगे बढ़ने से पहले पुराने को मिटाते हुए चलता है, लेकिन आप का साथ हमेशा याद रहेगा... आप सब लोगों के साथ किया गया काम जीवन का सबसे सुखद अनुभव था।