रुखसाना

आसमान लाल-पीली, नीली पतंगों से अटा था। छतें भरी-भरी, जैसे डीटीसी की बसें। सलीम ने भी कनकौव्वा नीली छतरी की तरफ भेज दिया। और मैं, मैंने भी तो सिरकटी छोड़ रखी थी। सलीम की छत मेरे सामने से राइट की दूसरी। पेंच पर पेंच, जाने कैसे-कैसे दांव-पेंच। सलीम अब तक चार-पांच तिरंगी काट चुका था। सभी लहरियों में मस्त। पर मुझ जितना मजा शायद ही किसी को आ रहा हो। सलीम को भी नहीं। आती भी कैसे, मेरे पास एक एक्स्ट्रा ऑप्शन था। हवा सलीम के घर की तरफ थी। मैं रुखसाना को भी साथ-साथ देख रहा था। उसने चरखी पकड़ रखी थी सलीम की। मेरे बचते-बचते भी सलीम ने पेंच लड़ा लिए। बला की खूबसूरत उस लड़की पर अगर मैं पचास कनकौव्वे और पचास सिरकटीयां न कटवा लूं, तो कहते। बदन पर नीला सूट पहने रुखसाना किसी पर कयामत न ढाए, तो यही आश्चर्य हो सकता है। अब समझ में आया कि आज आसमान थोड़ा फीका क्यों लग रहा था, उसका सारा रंग तो रुखसाना ने ले लिया था। बहुत कोशिश की कि मेरी ही कट जाए, पर ढील देते ही साली सलीम की ढीली हो गई। रुखसाना ने एक झटके से आंखों के आगे आ गए बालों को लहरा दिया। सलीम ढील खींच रहा था और रुखसाना लपेट रही थी। लपेट क्या रही थी, बस कयामत ही ढा रही थी। 'अबे छोड़ दे, घर आके धोऊंगा। देख लेईयो...' एक राह चलते बालक ने उसकी डोर पकड़ ली थी। धमकी के बाद छोड़ दी। रुखसाना मेरी तरफ मुड़ गई थी। मेरी सांसें ऊपर नीचे हो गई। फकीर बाबा को याद किया। दुआ मांगी- रुखसाना कुबूल है, कुबूल है, कुबूल है। अब बस उसी के कुबूल का इंतजार है।

'अबे नीचे भी आएगा या ऊपर ही मरेगा...' बैकग्राउंड से अम्मी की आवाज आई। कितना गंदा बोलती है ना। पर उसके सिवा मुझसे ऐसे कोई बात नहीं कर सकता। एलबीएस में खूब दादागिरी चलती है अपनी। नवीं के सभी लड़के 'रहमान भाई, रहमान भाई' करते फिरते हैं। पर वो सब तो हुई सोशल लाइफ। अभी अपनी कोई पर्सनल लाइफ भी तो है। और आज से बस उसका टेण्डर रुखसाना के नाम भर दिया है। इन खयालों के बीच सारा रोमैंटिक सीन खराब हो गया। सलीम नया मांजा लेने चला गया और रुखसाना बेचारी छत पर अकेली क्या करती, वो भी चली गई। वैसे रुखसाना अकेली तो न थी। पर जाने क्यों मुझे सीरियस ही नहीं लेती। इसके चक्कर में अस्सी रुपये कुर्बान कर दिये, अयूर की मसाज के। चमक भी रहा हूं आज। इतनी मेहनत की है कि अब तक तो इसकी मां पट जाती, पर ये...। फकीर बाबा माफ कर दो, माफ कर दो। मां नहीं... मां नहीं... गलती हो गई। रुखसाना की... सॉरी रुखसाना ही दिला दो।

'अबे मर गया क्या?' बैकग्राउंड से फिर अम्मी की आवाज।

'आया अम्मी...' नीचे जाने से पहले एक बार इधर-उधर की छतों पर और ताक लिया जाए, तो कोई बुराई थोड़े ही है। 'ओ तेरी, ये भैण के टके क्या कर रहे हैं...' तीसरी छत पर रऊफ और आठवीं पर रमसूल भी खड़े थे। साले अभी भी रुखसाना की छत की तरफ ताक रहे हैं। मैंने सोच लिया कि भाई पहले पूरी तहकीकात करनी पड़ेगी। फिर पूरा इलाज करना पड़ेगा। एक म्यान में तीन तलवार नहीं रह सकती।

'हां अम्मी...' अम्मी ने एक लिस्ट दे दी। पंसारी के पास जाना था। मैं घर से निकला, तो अपने घर की दहलीज पर रुखसाना भी खड़ी थी। मैं वहीं रुक गया। उसे देखकर साली सम्पर्क क्रांति भी रुक जाए, मैं तो फिर भी रहमान था। उसे मालूम तो था कि मैं उसे दिलोजान से चाहता हूं। दूसरी तरफ देखकर मुस्कुरा रही थी, पर साली ने मेरी तरफ नहीं देखा। मैं मस्जिद के साथ वाली परचून की दुकान पर चला गया। वहीं इमरान भी खड़ा था। लौंडियाबाजी में इमरान का कोई सानी न था।

'हां भई, कैसी चल रही है सैटिंग्स...' मैंने उससे पूछ ही लिया।
'सैटिंग्स..' उसने थोड़ा जोर दिया 'हमने कर रखे हैं ऐसे काम.... जिस गली से निकलते हैं, आवाज आती है- अब्बा जान, अब्बा जान'
'अबे कुछ भाई का भी तो भला कर...' मैंने दरख्वास्त दी।
'पहले खुद का कर लें, फिर भाईयों का ही करूंगा।' साला इमरान बड़ा हरामी था।
'भाई मुझे तेरी भाभी से प्यार हो गया है।' मैंने धीरे से कहा 'मान नहीं रही, कोई तरीका बता।'
'भैणचो तू मेरी भाभी पर लाइन मार रहा है, तेरी मां की...' उसने गिच्ची पकड़ ली।
'भैण के टके तेरी भाभी से नहीं...' मैंने उसके हाथों से अपनी कमीज छुड़ाई।
'भैणचो अभी तो बोला तू'
'अबे मैं कौन हूं... तेरा भाई ना...'
'हां'
'तो मेरी सैटिंग तेरी भाभी नहीं हुई।' उसने हां में जवाब दिया। अब समझ गया था।
'तो भैण के टके मुझे तेरी भाभी से ही तो प्यार होगा। या तेरी मां से होगा...' अबके मैंने उसकी गिच्ची पकड़ ली।
'दिक्कत क्या है?' इमरान ने पूछा।
'बताया ना मान नहीं रही'

'देख भाई, जमाने का दस्तूर है। जिसे तुम सिर पर चढ़ाओगे, वो तुम्हें ठुड्डे पर रखेगा (पैर के अंगूठे की तरफ इशारा करके) और जिसे तुम ठुड्डे पर रखोगे, वो तुम्हें सिर पर बिठाने को मरता फिरेगा।' उसने गुरुमंत्र दिया। मुझे कुछ-कुछ समझ में आ रहा था। साले पंसारी ने सामान बांध दिया था। घर जाना पड़ा। पर एक कसम खा ली- भैण की टकी को ठुड्डे पर रखूंगा।

चार दिन से छत पर नहीं गया। रुखसाना गली में खड़ी रहती, मैं नहीं देखता। कभी गाहे-बेगाहे छत पर जाना होता, तो रऊफ और रमसूल को देखकर जान निकल जाती थी। इतने दिन में आखिर हुआ क्या- अंदर दिल जलता रहा, बाहर कोई और ही तितली मसलता रहा। अब ऐसा न हो कि रुखसाना हाथ से ही निकल जाए। सोचने पर मजबूर होना पड़ा- बाबा किस्मत में लिखी है तो मिलके रहेगी, नहीं लिखी तो भैण का टका उसका बाप निकाह पढ़ा दे, तो नहीं मिलेगी। दिमाग में फोकट की टेंशन हो रही है। ठुड्डा-फुड्डा सब फेल है। फिर से छत पर राउंड शुरू हो गया। रुखसाना अपनी छत पर खड़ी थी, दूसरी तरफ देख रही थी। बीच-बीच में मुझे देखकर मुस्कुरा देती। पर दूसरी तरफ देखकर भी तो मुस्कुरा रही थी साली। वो ही तीसरी छत पर रऊफ और आठवीं पर रमसूल। मेरी दोनों से दोस्ती थी, पर जब से इनकी नीयत मालूम चली है, बोलचाल बंद हो गई है। मैंने बताया था ना मेरे घर के सामने वाले घर से राइट का मकान रुखसाना का था और रुखसाना के सामने वाले घर से लेफ्ट का मकान रऊफ का। मतलब ये कि हमारे घर आपस में त्रिकोण बनाते हैं। रुखसाना के बाप को भी यही मकान लेना था। हमारे साथ वाला ले लेता। कम से कम दो प्रेमी मिल तो जाते। पर अब इन दोनों का तो कुछ करना ही पड़ेगा। अपनी भाभी पर लाइन मारते हैं साले। गुस्सा आया मुझे- इन दोनों पर भी और फकीर बाबा पर भी। 'एक ही तो चीज मांगी थी, वो नहीं दे रहे। इस बार मजार पर पैसे भी तो चढ़ाए थे। इस बार उठा लाऊंगा।' पक्का कर लिया कि दोनों लौंडों को भी मजा चखाऊंगा। छत से नीचे चला आया। अम्मी आज खुश दिख रही थी, शायद मेरे जल्दी नीचे आने की खुशी थी। घर से बाहर आया तो साथ के जोड़ीदार मिल गए। उन्हें रोक लिया। आज मजा चखाना था तीसरी-आठवीं छत वालों को। काफी देर के इंतजार के बाद रऊफ दिखा। पर साले ने क्या खतरनाक बॉडी बना ली थी। भाई इससे पंगा महंगा पड़ेगा। मैं तो सोच ही रहा था, पर मेरे जोड़ीदार तो भाग चुके थे। प्यार में मर जाऊं, तो भी गम नहीं, सोचा और बाजू ऊपर चढ़ाकर उसके सामने चला गया।

'क्या है?' रऊफ बोला।
'क्या भाई, भूल गया क्या? कैसा है?' मैंने चढ़ाई हुई बाजू नीचे कर ली।
'ठीक हूं' वो चलने लगा।
'रुखसाना भाभी भी ठीक है?' सुनकर रऊफ रुक गया। मैंने तेल-मिर्च वाली एक कहानी बनाकर उसे सुना दी- 'भाई साला रमसूल भाभी पर लाइन मारता है। तू मेरा भाई है, इसलिए बता रहा हूं, नहीं मुझे क्या?' ऐसा चमकाया कि बस। अब वही संभालेगा रमसूल को। अगले दिन छत पर गया तो आठवीं छत खाली थी। मेरी छाती फैल गई। एक कांटा तो निकाल दिया, अब दूसरा खटक रहा है।

रुखसाना से भले ही न थी, पर उसकी अम्मी से तो अच्छी बोलचाल थी मेरी। 'सलाम मालेकम खाला जान...' खाला बनाना पड़ गया, अम्मी बोलने को दिल कर रहा था। 'खालाजान घर की इज्जत बची रहे बस। कोई और घर होता तो न बताता, पर आपसे क्या छुपाना। सामने वाला रऊफ अपनी रुखसाना पर...' आए 'अपनी रुखसाना' बोलते वक्त जान ही निकल जाती, तो सीधा जन्नत नसीब होती- '... अच्छी नजर नहीं रखता।' उससे भिड़ न सकता था, पर किसी और को तो भिड़ा सकता था। रॉकेट छोड़ दिया बस। अब सब उसकी अम्मी के हाथ। शाम को रुखसाना का बाप देसी चढ़ाकर आया। फिर जो क्लाइमेक्स था, उसमें मजा तो आना ही था। दोनों आमने-सामने वालों की ऐसी दुश्मनी हो गई कि पूछो मत। ऐसी गालीबाजी हुई कि मां-भैण सबकी बखिया उधेड़ दी।  रहमान खुश। अजी हम खुश। सांप भी मर गया और लाठी टूटने का सवाल ही नहीं था। अगले दिन तीसरी छत भी खाली। बस मैं और मेरी रुखसाना। क्या मुस्कुरा रही थी। लगता मानो चांद पर बारिश हो रही हो। मेरी लव स्टोरी अभी सिर्फ मुस्कुराहट पर ही जिंदा थी। अब मैंने आगे बढ़ाने का इरादा किया। बच्चों के नाम भी सोच लिए- जावेद और जुनैब।

शाम को रुखसाना की अम्मी मेरे घर आई अम्मी से मिलने। रुखसाना भी साथ थी। मैं छत की सीढिय़ों पर छुपा बैठा था।
'मैंने सोचा है कि अब रुखसाना के निकाह की बात कर ही लूं।' उसकी अम्मी की इस लाइन में मेरी मन्नत पूरी कर दी। मैं घर से निकला, सीधा फकीर बाबा की मजार पर पहुंचा। जेब में पांच रुपये थे, वो वहीं रख दिए। और बाबा को थैंक्यू बोला। घर चला गया।
आज घर में शरमाया-शरमाया घूमता रहा। अम्मी से जानबूझकर कुछ न पूछा। मुझे लगा अम्मी खुद ही बता देंगी। अगली सुबह को रुखसाना और उसकी अम्मी फिर घर आए। 'अब तो इस घर में आना-जाना लगा ही रहेगा। रिश्तेदार जो बनने जा रहे हो...' उसकी अम्मी के बोलते ही मेरा चेहरा शर्म से लाल हो गया।
'इसी जुम्मे तेरे मामू देखने आ रहे हैं इसे। सिकंदर के लिए बात चलाई है रुखसाना की।' अम्मी के बोलते ही मेरी तो जान जाते-जाते बची।

'टाइम से आ जाना रहमान की अम्मी...' उसकी अम्मी बोलकर चलने के लिए मुड़ी।
'तुम भी आना भाईजान...' रुखसाना बोली। साली इस बात पर भी मुस्कुरा रही थी। जुम्मे पर मामू के सामने भी मुस्कुरा रही थी। उनके ड्राइवर को देखकर भी मुस्कुरा दी। भाभी बनने के बाद पता चला साली को मुस्कुराने की बीमारी थी। हर बात पर मुस्कुराती थी।