महासमाधि

अकूतानंद महाराज का जैसा नाम था। वैसा ही व्यापार भी। कहने को तो संत थे, पर अकूत सम्पत्ति के मालिक। लाखों की जमीन, हीरे-सोने के आभूषण, वैसे ही लाखों की तादाद में अनुयायी। कुछ महीनों पहले तक हजारों की संख्या थी। महाराज अपने प्रवचनों में बार-बार कहते थे- साधु और मित्र के घर खाली हाथ न जाना चाहिए। जहां उनका पाण्डाल सजाया जाता, चारों कोनों में दसेक दानपात्र भी रख दिये जाते। हजारों की संख्या में भक्त आते। कोई पांच डालता, कोई दस। एक बार की शिफ्ट में ही लाखों जमा हो जाते। महाराजजी दो शिफ्ट में प्रवचन देते थे। सुबह केवल मोह माया त्यागने पर चर्चा होती, तो शाम को रामधुन। संसार में हर जगह लोग शांति की तलाश में दर-दर फिरते हैं। फिर महाराज जी का वाणी कौशल ही ऐसा था कि हृदय बस शांत सा हो जाता था। इसीलिए भक्तों की तादाद बढ़ती जा रही थी। आजकल महाराज जी हाथों में एक जादू भी आ गया था। जाने कैसे उनके छूने से भक्तों के दुख-दर्र्द दूर होते जाते थे। पॉलिटिक्स, प्रशासन में सब जगह महाराज जी के भक्त बैठे थे। सब महाराज जी को चंदा देते थे, पर कई जगह महाराज जी को भी देना पड़ता था। बस धंधा और चंदा दोनों जोर-शोर से चल रहे थे।

महाराज जी के चहेते मंत्री की कृपा से उन्हे शहर में एक बहुत बड़ी जमीन मामूली कीमत पर मिल गई। नए आश्रम का निर्माण शुरू हुआ। शिलान्यास मंत्री ने ही किया। महाराज जी के लिए अलग से गर्भगृह बनवाया गया था। पचास से भी अधिक कमरों का गर्भगृह। महाराज जी की चहेती भक्तों को ही सिर्फ गर्भगृह में आने की आज्ञा थी। चौबीस घंटे कड़े पहरे में रहत थे महाराज जी। जाने उन्हें किससे खतरा था। आज मंत्री जी ने महाराज जी से मिलने का अपॉइंटमेंट फिक्स कर खा था। सही समय पर पहुंच भी गए। साथ में पार्र्टी की एक महिला कार्यकर्र्ता भी थी। चेहरे से ही लग रहा था कि उसने राजनीति में नया-नया कदम रखा है। वह महाराज जी को साक्षात देखना चाहती थी। जब से यह आई थी मंत्री जी को बड़ा सुकून हो गया था। और थी भी उनकी मुंहचढ़ी। सो मंत्री जी इनकार न कर सके। मंत्री जी के पहुंचते ही महाराज जी ने उठकर अभिनंदन किया। तीनों में वार्तालाप शुरू हुआ। फिर महाराज जी और मंत्री की आंखों-आंखों में कुछ बात हुई और मंत्री जी को एक जरूरी काम याद आ गया। वे अकेले ही वहां से निकल गए। महिला वहीं बैठी रही। तीन दिन बाद यह महिला कार्यकर्ता कहीं जंगल में बदहवास हालत में मिली। किसी राहगीर की सूचना पर गश्ती दल पहुंचा और उसे लेकर थाने आ गया। पर महिला ने पहले मंत्री जी से बात करनी चाही। फिर कैसे-क्या फोन घूमे, पुलिस वाले महिला को लेकर मंत्री जी के बंगले पर पहुंचे। न रिपोर्ट दर्ज हुई न ही यह मालूम चला कि वह जंगल कैसे पहुंची। अगले चुनावों में इसी महिला कार्यकर्र्ता को टिकट मिला। मंत्री जी का हाथ सिर पर था, सो कार्यकर्ता को एमएलए मैडम बनते देर न लगी। महाराज जी ने भी उसे अपने ट्रस्ट में पदाधिकारी घोषित कर दिया था। किस्मत अच्छी हो तो क्या-क्या नहीं हो जाता। मंत्री जी भी चुनाव जीतकर राज्य के गृहमंत्री हो गए। महाराज जी की धार्मिक गतिविधियां जोर-शोर से चालू थीं। उन्होंने कुछेक स्कूल और कर्ई जगहों पर अस्पताल भी खुलवा दिये थे। सब चंदे से चल रहे थे, पर मालिका हक महाराज जी का था। एमएलए मैडम से आजकल कुछ ज्यादा ही मेलजोल हो गया था महाराज जी का। लगभग रोज ही  उनका आना होता था आश्रम में। कभी-कभार दो-एक कम उम्र महिला कार्यकर्ताओं के साथ आतीं, पर जाते समय अकेली होती थीं। क्ई बार अकेली आती थीं, तो जाते समय दो-एक कार्यकर्ता साथ होतीं।

सब पर प्रभुकृपा बरस रही थी। गर्भगृह में इन महिलाओं को खाने-पीने और पहनने की ढेरों चीजें दी जातीं। कुछ तो स्वयं ही आकर्षित होकर मान जातीं। ना-नुकर करने वालों के लिए नशे का इंतजाम था। उन्हें नशे में लूटा जाता था। जाते समय महाराज जी इन सबको प्रसाद रूप में सोने के हार, हीरे-जवाहरात दिया करते थे। दो या तीन दिन आश्रम में रहकर इतनी कमाई कर लेना कम न था औैर भोग-विलास भी था। सो जो एक बार यहां आ जाती, वह पुन: पुन: आने को आतुर रहती। पर इस बार महाराज जी से एक गलती हो गई। उन्होंने विजयिनी को लूटना चाहा। कई उपायों के बाद भी जब वह मनोरथ में पूर्ण न हुए, तो उन्होंने उसे नशे की हालत में रात्रि में आश्रम से निकलवा दिया। दूसरी तरफ आश्रम के गार्ड को भेजकर उसे फिर पकड़वा लिया। आश्रम की कई बहुमूल्य वस्तुएं उसके पास से बरामद हुईं। पुलिस में मामला गया, पर आधे घंटे में ही दोनों पक्षों में राजीनामे के बाद आश्रम ट्रस्ट ने मामला वापस ले लिया। वैसे भी पुलिस का दबाव तो सिर्फ विजयिनी को फंसाने के लिए था। विजयिनी को बदनामी की, जेल की ढेरों धमकियां दी गईं। वह जानती थी कि इन जैसों से वह अकेली पार नहीं पा सकती। छोटे से बड़ा तक उनके हाथ में था। सो उसे झुकना पड़ा।

समय ने घटना को धुंधला कर दिया था। कई महीनों बाद आज विजयिनी एमएलए मैडम से मिलने गई। उसे आश्रम चलने की विनती की। मैडम भी महाराज जी से कर्ई दिनों से नहीं मिल पाई थी, सो जल्दी ही राजी हो गई। दोनों लाल बत्ती में सवार होकर आश्रम पहुंच गई। चप्पे-चप्पे पर सुरक्षाकर्मी खड़े थे। महाराज जी से मिलने के लिए सबको सिक्योरिटी जांच से होकर जाना पड़ता था। एमएलए मैडम की भी तलाशी ली जाने लगी, पर विजयिनी चीख पड़ी- 'जानते नहीं हो मैडम को? किसी को मालूम चल गया तो तुम सब जाओगे। हम न लेने देंगे इनकी तलाशी। कोई आतंकी समझे हो?' एमएलए मैडम पहले तलाशी देने को तैयार थी, पर अब उन्हें अपनी अहमियत मालूम चली। उसने मन ही मन विजयिनी की तारीफ की। सुरक्षा पर मामला बिगड़ता देख ट्रस्ट के कई पदाधिकारी आ गए। वैसे तो मैडम जी भी पदाधिकारी थीं, पर नियम तो नियम था। सभी को जांच तो करवानी ही पड़ती थी। लेकिन विजयिनी किसी की सुनने को तैयार न थी। आखिर बात महाराज जी तक पहुंची। वे स्वयं बाहर आए और सुरक्षाकर्मियों को जमकर लताड़ पिलाई। आगे से मैडम का खास ख्याल रखने की हिदायत दी। विजयिनी की तलाशी होने लगी, तो भी उन्होंने डपट दिया- 'आने दो- आने दो...'

तीनों गर्भगृह में पहुंचे। महाराज जी अपने आसन पर बैठे। एमएलए मैडम भी बैठीं। विजयिनी खड़ी रही।
'तुम भी बैठो बेटा' महाराज जी ने कहा।
'आप मुझे बेटा कैसे कह सकते हो। मेरे साथ की गई अपनी हरकत भूल गए?' विजयिनी तमतमा उठी।
महाराज जी के चेहरे पर शंकामिश्रित विस्मय उभरा। वाक्पटुता जागी- 'बीती ताही बिसार दे, आगे की सुख लेय। जो हुआ, काल-कल्पित था। उसे भूल जा। अब तू हमारी शरण में आई है। हम तुझे परम शिष्या घोषित करते हैं। तू संसार में दमकेगी। मैं तुझे ऐसी जगह पर ले जाऊंगा, कि मेरे नाम से पहले तेरा नाम लिया जाएगा।'
'हां आपके नाम से पहले मेरा नाम लिया जाएगा।' इसी के साथ ही दो बार धांय-धांय की जोरदार आवाज हुई। महाराज जी आसन पर ढेर हो गए। उनकी आंखें खुली रह गई।

एमएलए मैडम का गला सूख गया था। आवाज कहीं खो गई। लडख़ड़ाते हुए बोली- 'तो यह सिक्योरिटी का नाटक पहले से नियोजित था।' विजयिनी कुछ नहीं बोली। पिस्तौल ने मैडम को जवाब दिया। और आखिरी गोली उसने स्वयं पर चलाई।

गर्भगृह से गोलियों की आवाज सुन सब उस तरफ भागे। कमरे का दरवाजा खोलकर देखा, तो सब सन्न। किसी को यह उम्मीद नहीं थी। पूरे शहर में शोक फैला था। बड़े-बड़े लोग महाराज जी को श्रद्धांजलि दे रहे थे। निंदा और संवेदना के लंबे-लंबे बयान जारी किए गए। महाराज जी की हत्या में आतंकियों का हाथ होने की भी आशंका जताई जा रही थी। दो दिन के अंतिम दर्शनों के बाद ट्रस्ट ने लाखों रुपये लगाकर महाराज जी की समाधि आश्रम में ही बनाने का निर्णय लिया। देशभर में इस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण किया गया। सुबह सभी अखबारों में लीड हैडिंग थी- 'महासमाधि'। महाराज जी की हत्या क्यों हुई, प्रश्न गौण हो गया था और उसकी जांच जारी थी।