बहन छायावती और छज्जू बाबा

`पर माननीय न्यायाधीश महोदय... ये आज मुझे पप्पी देना चाहता है, कल को कुछ और देने की कोशिश करेगा...'
`तो...' न्यायाधीश ने नाक से चश्मा खिसकाया।
`तो क्या महोदय... आज तो मैं कुर्सी पर हूं। जवान हूं, अपनी रक्षा स्वयं करना जानती हूं। कल बूढ़ी भी होऊंगी। तब हो सकता है, शरीर से कमजोर भी हो जाऊं... इस आतंकवादी से अपनी रक्षा ना कर सकूं...'
`ओब्जेक्शन माई लॉर्ड' सामने बैंच पर बैठा वकील खड़ा हो गया। सिर नीचे झुके होने के कारण मालूम नहीं चल रहा था कि यही बोल रहा है। `बहन छायावती मेरे मुव्वकिल को आतंकवादी कहकर उनकी छवि खराब कर रही है। जबकि माननीय उच्चतम न्यायालय ने भी उन्हें सिर्फ हथियार रखने...'
`ओब्जेक्शन संस्टेन' न्यायाधीश ने फिर चश्मा चढ़ा लिया।
`आप बिना किसी की छवि धूमिल करते हुए साफ-साफ बताएं- क्या कहना चाहती हैं...'
`वही तो बता रही हूं'
`क्या' न्यायाधीश ने चश्मा चढ़ाने की कोशिश की। हालांकि वह पहले से ही चढ़ा हुआ था।
`वही कि आज मैं अपनी रक्षा कर सकती हूं। कल जब मैं कमजोर और बूढ़ी हो जाऊंगी, तब फिर इसकी नेतागिरी जाग गई और फिर पप्पी मांगने आ गया, तो मैं कहीं की नहीं रहूंगी जज साहेब।'
`लेकिन तब यह किसी बूढ़ी और कमजोर की पप्पी क्यों लेगा...' जज का प्रश्न वाकई काबिले-गौर था- `और यह भी तो बूढ़ा हो जाएगा, हो सकता है इसकी लालसा तब तक खत्म हो जाए।'
`और जो ना हुई...' बहन छायावती के होंठों का एक छोर थोड़ा सा लंबा खिंच गया। `घोड़ा और आदमी कभी बूढ़ा नहीं होता जज साहेब...' इस वाक्य से बुजुर्ग न्यायाधीश ने खांसते हुए फिर से चश्मा चढ़ाने का असफल प्रयास किया।
`आपके सामने यह जो हाथ बांधे खड़ा है जज साहेब, उसने मुझसे ही नहीं, पूरे आजमगढ़ और पूरे उत्तरप्रदेश की महिलाओं की पप्पी मांगी है। हुजूर इसका कहना है कि इनकी सरकार आते ही पूरे आजमगढ़ की जनता को यह पप्पी और झप्पी देगा।' छायावती का हाथ भाषण की मुद्रा में अपने-आप उसके मुंह के सामने आ गया। फर्क सिर्फ इतना था कि सामने जनता नहीं थी और हाथ में माइक भी नहीं था। `ये देश की उनचास करोड़ सत्तावन लाख महिलाओं का अपमान है। अन्याय है और मैं यह नहीं होने दूंगी।'
`क्या पप्पी नहीं लेने दोगी?' जज ने पूछा।
`अपमान नहीं होने दूंगी...' बहन छायावती को क्रोध आ गया। `एक बाहरी आदमी हमारे ही विरोधियों से मिलकर हमारी महिलाओं को पप्पी देता फिर रहा है, ऐसा मैं नहीं होने दूंगी'
`मतलब अगर यह बाहरी नहीं होता या फिर आपके विरोधियों से नहीं मिला होता, तो संभावना थी...' जज का चश्मा नाक से धीरे-धीरे उतर रहा था।
`तो मैं इसे हाथी से कुचलवा देती जज साहेब...'
`हूं' जज ने कुछ सोचा।
`हूं नहीं जज साहेब। इस पर बलात्कार के प्रयास का मुकदमा चलना चाहिए।' बहन छायावती ने कहा।
`ओब्जेक्शन माई लॉर्ड' सामने वाली बैंच से पिछली बार उठा वकील फिर से खड़ा हुआ- `बहन छायावती जो मन में आ रहा है, बोल रही है। मेरे मुव्वकिल ने किसी स्त्री की तरफ नजर उठाकर तक नहीं देखा, तो बलात्कार का प्रयास कैसे हो गया।'
`क्यों बलात्कार का प्रयास कैसे होता है।' बहन छायावती ने वकील की तरफ ही देखा।
`मुझे नहीं मालूम...' पीछे बैठे सभी लोगों की हंसी छूट गई।
`मेरा मतलब उसकी शुरूआत कहां से होती है...'
`वह भी नहीं मालूम' वकील के जवाब के साथ एक बार फिर सन्नाटेदार कमरे में हंसी गूंजने लगी।
`तुम जैसे आदमी से बात करके तो मैं अपना टाइम... खैर छोड़ो जज साहेब आप ही बताइये इस अपराध के लिए शुरूआत तो एक पप्पी से ही होती है ना...'
`हूं' जज ने सोचनीय मुद्रा बनाई। `लेकिन इसने पप्पी तो ली ही नहीं...'
`जज साहेब अपराध करने के बारे में सोचना ही तो शुरूआत है। अपराधी पहले सोचता है, फिर कर डालता है।' बहन छायावती ने गले में डाले गमछे (दुपट्टे) को एक हाथ से झटका देकर दूसरी तरफ कर दिया। `मान लो एक आदमी हाथ में हथौड़ा लिए बाजार में बैठा है और बोले कि मैं सभी दुकानों में चोरी करना चाहता हूं। तो क्या आप उसे खुला छोड़ देंगे। उसने अभी तक चोरी नहीं की, लेकिन इसकी क्या गारंटी है कि मौका मिलते ही चोरी नहीं करेगा।'
`सो तो है, तुम बात तो सही कहती हो।' जज अपनी बैंच पर झुक गया। ठसाठस भरी अदालत में सन्नाटा छा गया। छायावती जज की तरफ लगातार देख रही थी। दूसरी तरफ अपराधी छज्जू बाबा सर झुकाए और हाथ बांधे खड़ा था। `तो छज्जू तुम पर आरोप है कि तुमने पूरे प्रदेश की महिलाओं का अपमान किया है। तुम्हें अपनी सफाई में कुछ कहना है।'
`काहे को इतना लफड़ा कर कर रहे हो जे मामू...'
`जे मामू बोले तो...' जज ने पूछा।
`बोले तो जस्टिस मामू...'
`तुम मुंबइया छोड़कर सीधे-सीधे हिंदी में बात करो, तो ठीक, वरना मैं फैसला दे रहा हूं।' जज ने बैंच पर जोर से हथोड़ा ठोका।
`ओके.. ओके... देखो जज साब, मेरे को डायरेक्टर बोला, जनता को पटाना है, तो फिल्मी डायलॉग मार...'
`क्या वहां शूटिंग हो रही थी...'
`शूटिंग काहे की, मेरी सभा थी। इत्ती पब्लिक मेरे पीच्छू आई थी वहां...'
`तो डायरेक्टर कहां से आ गया...' जज ने पूछा।
`डायरेक्टर का मतलब- भाई बोला... भाई की फरमाइश थी ना...'
`देखा जज साहेब, ये चुनावी सभा नहीं आतंकी सभा थी। मुझे मरवाने के लिए भाई को भी बुलाया था।' छायावती बहन बीच में ही बोल पड़ी। जज की नजरें भी छज्जू पर गड़ गई।
`अरे बहन छाया... भाई बोले तो अपना अमर भाई। उसी की फरमाइश थी।'
`तो ये बुड्ढा भी मेरी पप्पी... छी; कैसी घिनौनी सोच है...' छायावती ने मुहं पर हाथ रख लिया। ये बुड्ढा भी वहीं दर्शकों में उपस्थित था।
`मैंने तो जादू की झप्पी देनी थी। भाई बोला- पप्पी भी देदे। तू तो वैसे भी पूरे देश की बहन है। तुझे पप्पी दूंगा, तो भी बुरी नजर थोड़ी होगी।'
`तो क्या तुम्हें इन दोनों बुड्ढों ने बरगलाया है।' छाया ने वहां बैठे लोगों की बैंच की तरफ देखा।
छज्जू चुपचाप जमीन की ओर देखने लगा। बोलने को कुछ ना रहा था। कहने को तो बहुत बड़ा नेता हो गया था, साथ ही अपनों से कोसों दूर। कमाता भी अच्छा-खासा था, लेकिन अब कुछ लोगों को खुश रखने में जिंदगी गुजर जाएगी। उसे भी मलाल था, लेकिन कहे किससे। जिनके चक्कर में वो फंस गया था, बहुत बड़े राजनीतिबाज थे। कांगे्रस को टक्कर देने के लिए फांस लिया था उन लोगों ने छज्जू को। जज ने उसी समय अपना फैसला सुना दिया, पर छज्जू को कुछ सुनाई नहीं दिया।
`बहुत अच्छे छज्जू बाबा। बाहर प्लेन तैयार है। कानपुर में सभा है, तुमको साथ चलना है।' दोनों बुड्ढे उसके पास आ गए। जज ने सिर्फ चेतावनी देकर छज्जू को रिहा कर दिया था। छज्जू उनके साथ चल दिया। कानपुर की सभा में दोनों बुड्ढों की फरमाइश पर उसने फिर फिल्मी डायलॉग बोले। सभाओं का दौर फिर चल पड़ा।