बेज्जती पर बेज्जती...
आज चिमनी झुंझलाता हुआ आता दिख गया। मुझे मालूम था कोई बकवास जरूर करेगा। इसलिए पहले से ही तैयार होकर बैठ गया।
`क्यों भाई आज चेहरे पर साढ़े बारह क्यों बजे हैं?` वैसे मुहावरा बारह बजने
का है। उसके आते ही मैंने पूछा।
`कुछ ना पूछो भैया` चिमनी ने बगैर नाक-भौंह सीधी किए यानि के जैसे आया था, वैसे ही चेहरे के साथ सामने कुर्सी पर बैठ गया। चिमनप्रकाश के साथ इन दिनों बहुत मेलजोल हो गया है। वह हमारे बगल के घर में नया किराएदार है। उसका मौहल्ले में और भी कोई साथी है या नहीं, मुझे नहीं मालूम पर मेरे साथ कुछ कह-सुनकर वह अपना गम हल्का कर लेता है। पहले-पहल मैंने उसे `चिमनप्रकाश जी` नाम से संबोधित किया, पर उसे चिमनी शब्द अति प्रिय है।
`तो बिना पूछे ही बता दो। और अगर रोज लंबे समय तक मुंह टेढ़ा रखोगे। आदत पड़ जाएगी, फिर सीधा नहीं होने का...` मैं कुछ और भी कहना चाहता था।
`अब तुम्हे कैसे बताऊं, क्या-क्या टेढ़ा हो गया है... कुछ सीधा नहीं रहा भैया।` चिमनी की चिंतित मुद्रा से चेहरा और विकृत हो गया।
मैं उसके हाव-भाव देख रहा था। उसके हाथ हिला-हिलाकर बोलने के अंदाज से मुझे अंदर ही अंदर हंसी आ रही थी, लेकिन बाहर से नहीं हंस पा रहा था। उसके पीछे कारण था- हो सकता है पूरे मौहल्ले में चिमनी मुझे ही सभ्य, समझदार और जागरूक मानता हो। और मेरे होठों के छोटे से फैलाव से सारी सभ्यता और जागरूकता का फालूदा निकल जाए।
`बेज्जती पर बेज्जती... अब सहन नहीं होती भैया।`
`आखिर कौन कर रहा है तुम्हारी बेइज्जती?` मैंने पूछा।
`और कौन? वही जिसे घोड़ी पर बैठकर लाया था। आज उसने मुझे ही घोड़ी बना रखा है...` चिमनी निरंतर छत की ओर देखकर आकाश का अनुभव कर रहा था - `पहले तो अकेले कमरे में करती थी। अब बच्चों के सामने भी करने लगी है। कल तुम्हे दिखा दूंगा- भरी सड़क पर करेगी।`
`तुम कहां से चलते हो और कहां पहुंच जाते हो...`
`कहां पहुंच जाता हूं- भैया बेज्जती की बात कर रहा हूं, भरी सड़क पर बेज्जती करेगी।` चिमनी ने मेरी मूर्खता पर गर्दन झटककर मुहं बिचकाया।
`अच्छा-अच्छा... चलो चाय पीओगे क्या?`
`मेरा खाना हराम हो गया, तुम्हे चाय की पड़ी है।` चिमनी कह रहा था- `तुमसे तो बात करके हम अपना टाइम ही खराब करते हैं। तुम्हारी जैसी केटेगरी के लोग हर जगह...`
`चलो भई माफ कर दो। चाय तो मुझे भी अच्छी नहीं लगती। ऐसे ही पूछ लिया था।` मैंने चेहरे पर गंभीर भाव बनाया।
`इसीलिए तो कह रहा हूं, ऐसे ही पूछ-पूछकर टाइम खराब करते हो।` चिमनी शांत हो गया। इतनी दुत्कार खाने के बाद मेरी भी आगे बोलने की हिम्मत नहीं थी। मुझे लगा चिमनी अब नाराज होकर घर चला जाएगा, लेकिन उसने फिर निगाहें छत की तरफ उठा लीं।
`भैया जब से ब्याव हुआ है। तब से बेज्जती कर रही है।` उसने निगाहें छत से हटा ली और हथेली से आंखें मसली। मैं वाकई उसकी निष्ठुर पत्नी के बारे में सोचने लगा। चिमनी को इतनी पीड़ा है कि आंखों से आंसू तक निकल आए।
`तुम्हे भैया हिट लानी चाहिए।` चिमनी ने कहा।
`मैं फिल्में-विल्में नहीं देखता भाई।`
`हिट- मच्छर मारने वाली। ससुरा आंख में घुस गया बैठे-बैठे।` चिमनी के कहने पर मुझे अपने पिछले विचार पर दुख हुआ। उसकी पत्नी उतनी निष्ठुर नहीं थी, जितना मैंने सोच लिया।
`किसी दिन मेरे हाथ से कुछ हो गया तो फिर...` चिमनी के चेहरे से वीररस बिल्कुल नहीं दिख रहा था।
`भैया ले आऊंगा हिट। एक मच्छर नहीं दिखेगा कल।`
`तुम तो बिल्कुल फोकटिया आदमी हो। मैं मच्छर को मारने के लिए भला इतनी प्लानिंग करूंगा?`
`तो?`
`तो क्या? बेज्जती की बात कर रहा हूं।` उसने फिर गर्दन झटककर मेरी मूर्खता सिद्ध की- `अब तुम तो जानते ही हो भैया। शादी करते ही सबको सब थोड़े ही आता है। तुमको ये नहीं आता। तुमको वो नहीं आता। परेशान हो गया। चलो इधर-उधर से मामला फिट बैठा, तो भी वो चैन नहीं लेने देती।`
`अब...` मैंने पूछा।
`अब बच्चे बड़े हो गए, तो ज्यादा बेज्जती करती है।`
`कैसे?`
`परसों बच्चे ने कहा मम्मी अल्बर्ट हॉल जाऊंगा। घोड़े पर बैठने की जिद कर रहा था। तो उसकी मम्मी बोली- अपने पापा पर बैठजा।` चिमनी माथे पर हाथ लगाकर बोला।
`तो इसमें क्या बेइज्जती हो गई। बच्चा ही तो है, बैठा लेते...`
`पर वो बोला- मैं गधे पर नहीं बैठता। जैसी मां वैसी उसकी औलाद। मैं तो तंग आ गया हूं।` चिमनी बोला।
`पर अभी तो चुन्नू स्कूल गया होगा ना। तुम्हारी बेइज्जती क्या सुबह उठते ही कर दी?` मैंने पूछा।
`परसों की बात है...` चिमनी मायूसी से बोला। शायद उसे दो दिन से बेइज्जती नहीं होने का गम था। मुझे भी आश्चर्य होना लाजमी था कि परसों की बात पर चिमनी आज मुंह फुलाकर क्यों बैठा है। यह राज भी जल्द समझ में आ गया। सुबह के अखबार में मंत्री के इस्तीफे की खबर छपी थी। इस्तीफा इसलिए कि मुख्यमंत्री ने मंत्री के पति की बेइज्जती कर दी थी।
`ऐसी नारियां भारत में विरला ही पैदा होंती है भैया।` चिमनी बोला।
`कैसी?`
`घोलमा जैसी।` चिमनी ने बड़ी श्रद्धा से नाम लिया- `घोलमा का नाम पतिव्रताओं की दुनिया में अमर हो गया भैया।`
`क्यों भाई आज चेहरे पर साढ़े बारह क्यों बजे हैं?` वैसे मुहावरा बारह बजने

`कुछ ना पूछो भैया` चिमनी ने बगैर नाक-भौंह सीधी किए यानि के जैसे आया था, वैसे ही चेहरे के साथ सामने कुर्सी पर बैठ गया। चिमनप्रकाश के साथ इन दिनों बहुत मेलजोल हो गया है। वह हमारे बगल के घर में नया किराएदार है। उसका मौहल्ले में और भी कोई साथी है या नहीं, मुझे नहीं मालूम पर मेरे साथ कुछ कह-सुनकर वह अपना गम हल्का कर लेता है। पहले-पहल मैंने उसे `चिमनप्रकाश जी` नाम से संबोधित किया, पर उसे चिमनी शब्द अति प्रिय है।
`तो बिना पूछे ही बता दो। और अगर रोज लंबे समय तक मुंह टेढ़ा रखोगे। आदत पड़ जाएगी, फिर सीधा नहीं होने का...` मैं कुछ और भी कहना चाहता था।
`अब तुम्हे कैसे बताऊं, क्या-क्या टेढ़ा हो गया है... कुछ सीधा नहीं रहा भैया।` चिमनी की चिंतित मुद्रा से चेहरा और विकृत हो गया।
मैं उसके हाव-भाव देख रहा था। उसके हाथ हिला-हिलाकर बोलने के अंदाज से मुझे अंदर ही अंदर हंसी आ रही थी, लेकिन बाहर से नहीं हंस पा रहा था। उसके पीछे कारण था- हो सकता है पूरे मौहल्ले में चिमनी मुझे ही सभ्य, समझदार और जागरूक मानता हो। और मेरे होठों के छोटे से फैलाव से सारी सभ्यता और जागरूकता का फालूदा निकल जाए।
`बेज्जती पर बेज्जती... अब सहन नहीं होती भैया।`
`आखिर कौन कर रहा है तुम्हारी बेइज्जती?` मैंने पूछा।
`और कौन? वही जिसे घोड़ी पर बैठकर लाया था। आज उसने मुझे ही घोड़ी बना रखा है...` चिमनी निरंतर छत की ओर देखकर आकाश का अनुभव कर रहा था - `पहले तो अकेले कमरे में करती थी। अब बच्चों के सामने भी करने लगी है। कल तुम्हे दिखा दूंगा- भरी सड़क पर करेगी।`
`तुम कहां से चलते हो और कहां पहुंच जाते हो...`
`कहां पहुंच जाता हूं- भैया बेज्जती की बात कर रहा हूं, भरी सड़क पर बेज्जती करेगी।` चिमनी ने मेरी मूर्खता पर गर्दन झटककर मुहं बिचकाया।
`अच्छा-अच्छा... चलो चाय पीओगे क्या?`
`मेरा खाना हराम हो गया, तुम्हे चाय की पड़ी है।` चिमनी कह रहा था- `तुमसे तो बात करके हम अपना टाइम ही खराब करते हैं। तुम्हारी जैसी केटेगरी के लोग हर जगह...`
`चलो भई माफ कर दो। चाय तो मुझे भी अच्छी नहीं लगती। ऐसे ही पूछ लिया था।` मैंने चेहरे पर गंभीर भाव बनाया।
`इसीलिए तो कह रहा हूं, ऐसे ही पूछ-पूछकर टाइम खराब करते हो।` चिमनी शांत हो गया। इतनी दुत्कार खाने के बाद मेरी भी आगे बोलने की हिम्मत नहीं थी। मुझे लगा चिमनी अब नाराज होकर घर चला जाएगा, लेकिन उसने फिर निगाहें छत की तरफ उठा लीं।
`भैया जब से ब्याव हुआ है। तब से बेज्जती कर रही है।` उसने निगाहें छत से हटा ली और हथेली से आंखें मसली। मैं वाकई उसकी निष्ठुर पत्नी के बारे में सोचने लगा। चिमनी को इतनी पीड़ा है कि आंखों से आंसू तक निकल आए।
`तुम्हे भैया हिट लानी चाहिए।` चिमनी ने कहा।
`मैं फिल्में-विल्में नहीं देखता भाई।`
`हिट- मच्छर मारने वाली। ससुरा आंख में घुस गया बैठे-बैठे।` चिमनी के कहने पर मुझे अपने पिछले विचार पर दुख हुआ। उसकी पत्नी उतनी निष्ठुर नहीं थी, जितना मैंने सोच लिया।
`किसी दिन मेरे हाथ से कुछ हो गया तो फिर...` चिमनी के चेहरे से वीररस बिल्कुल नहीं दिख रहा था।
`भैया ले आऊंगा हिट। एक मच्छर नहीं दिखेगा कल।`
`तुम तो बिल्कुल फोकटिया आदमी हो। मैं मच्छर को मारने के लिए भला इतनी प्लानिंग करूंगा?`
`तो?`
`तो क्या? बेज्जती की बात कर रहा हूं।` उसने फिर गर्दन झटककर मेरी मूर्खता सिद्ध की- `अब तुम तो जानते ही हो भैया। शादी करते ही सबको सब थोड़े ही आता है। तुमको ये नहीं आता। तुमको वो नहीं आता। परेशान हो गया। चलो इधर-उधर से मामला फिट बैठा, तो भी वो चैन नहीं लेने देती।`
`अब...` मैंने पूछा।
`अब बच्चे बड़े हो गए, तो ज्यादा बेज्जती करती है।`
`कैसे?`
`परसों बच्चे ने कहा मम्मी अल्बर्ट हॉल जाऊंगा। घोड़े पर बैठने की जिद कर रहा था। तो उसकी मम्मी बोली- अपने पापा पर बैठजा।` चिमनी माथे पर हाथ लगाकर बोला।
`तो इसमें क्या बेइज्जती हो गई। बच्चा ही तो है, बैठा लेते...`
`पर वो बोला- मैं गधे पर नहीं बैठता। जैसी मां वैसी उसकी औलाद। मैं तो तंग आ गया हूं।` चिमनी बोला।
`पर अभी तो चुन्नू स्कूल गया होगा ना। तुम्हारी बेइज्जती क्या सुबह उठते ही कर दी?` मैंने पूछा।
`परसों की बात है...` चिमनी मायूसी से बोला। शायद उसे दो दिन से बेइज्जती नहीं होने का गम था। मुझे भी आश्चर्य होना लाजमी था कि परसों की बात पर चिमनी आज मुंह फुलाकर क्यों बैठा है। यह राज भी जल्द समझ में आ गया। सुबह के अखबार में मंत्री के इस्तीफे की खबर छपी थी। इस्तीफा इसलिए कि मुख्यमंत्री ने मंत्री के पति की बेइज्जती कर दी थी।
`ऐसी नारियां भारत में विरला ही पैदा होंती है भैया।` चिमनी बोला।
`कैसी?`
`घोलमा जैसी।` चिमनी ने बड़ी श्रद्धा से नाम लिया- `घोलमा का नाम पतिव्रताओं की दुनिया में अमर हो गया भैया।`
मैंने उसे समझाया कि सब राजनीति है। सबकी पत्नियाँ एक जैसी हैं और सब पतियों की स्थिति भी एक जैसी हैं। घर पर हर पति बेइज्जती सहता है। चाहे वह बराक हुसैन हो या मनमोहन सिंह। टीना (अंबानी) का पति हो या टि्वंकल का। सब पतियों की लकीरों में बेइज्जती खोद-खोदकर लिखी गई है। ये बेचारा चिमनी नहीं जानता कि जिस घोलमा को यह त्याग की मूर्ति बता रहा है, उसका पति किरोरी घर पर कितना चिरोरियां करता होगा।
(गुरुवार को राजस्थान की खादी एवं ग्रामोद्योग राज्यमंत्री ने पद से इस्तीफा दे दिया है।)