सरप्राइज को सरप्राइज

पापा ने आज सुबह-सुबह ही फोन कर दिया। मम्मी से पूछा कि छोटी वाली अटैची तुम लोग साथ में ले आए थे क्या। मम्मी ने कहा- नहीं। पापा ने फिर पूछा कि वहां बाजरा पड़ा है या नहीं। मम्मी ने कहां हमने तो एक बार भी बाजरे की रोटी नहीं बनाई। पापा ने एक प्रश्न और पूछा कि दलिया तो खत्म हो ही गया होगा। मम्मी ने कहा- नहीं वो भी जितना लाई थी, उतना ही पड़ा है। दरअसल बात यह है कि मैं अपनी पत्नी, बच्चे और मम्मी को पन्द्रह दिन पहले जयपुर ले आया हूं। पापा वहां मेरे बड़े और छोटे भाई के साथ अकेले रह गए हैं। आज सुबह उनकी पूछताछ के बाद मैंने सोचा हो सकता है पापा जयपुर आ रहे हों। लेकिन पूछने पर पापा ने मना कर दिया।
छोटे भाई से मेरी बात हुए पांचेक दिन हो गए थे। आज भी बात करने का कोई इरादा नहीं था। गूगल मेल खोला, तो छोटा भाई ऑनलाइन था। उसे सिर्फ इसीलिए फोन किया कि `तू वहां नेट पर बैठता है, तो मुझे पता चल जाता है...`।
छोटे भाई ने ऐसे ही पूछ लिया- `पापा से बात हुई? ´
मैंने कहा- हां सुबह हुई थी।
`पापा कहां है?´ छोटे भाई के इस सवाल पर मुझे सुबह की पापा की पूछताछ याद आ गई।
मैं बोला- बस में।
छोटा भाई बोला- तुझे कैसे पता?
मैंने कहा- तूने ही तो बताया अभी।
छोटा भाई हंसने लगा और बोला- `भाईजी मम्मी और भाभी को मत बताना पापा आ रहे हैं। और पापा को बताना ही मत कि मैंने बता दिया।´
फिर मैंने पापा को फोन किया। पूछा- पापा क्या कर रहे हो?
पापा ने बड़े प्यार से कहा- बेटा अभी-अभी टीवी बंद किया है। बस सो ही रहा हूं।
मैंने कहा- आप वाले रूट की बसों में टीवी तो लगाया ही नहीं होता।
इस बात पर पापा और मुझे दोनों को हंसी आ गई। वो मुझे सरप्राइज दे रहे थे। मैंने उन्हें दे दिया। पर सुबह मम्मी और मैडम को जरूर सरप्राइज मिलेगा। और सबसे बड़ा सरप्राइज मिलेगा मेरे `चुन्नू´ को।