
रात के बारह तो बज ही चुके हैं। अब सुबह से मतदान शुरू है। सरकार घोषणा कर चुकी है- आज `सूखा दिवस´ है। सरकार की नजरों में मात्र `दारू´ को ही `गीले´ का दर्जा दिया गया है। बाकी सब सूखा ही सूखा। इसीलिए जिस दिन दारू नहीं बिकेगी, वो दिन `सूखा दिवस´। इस दिन को कोई और नाम भी दिया जा सकता था, लेकिन सबसे ज्यादा राजस्व यही `गीली´ दारू देती है। बहुत खूबियां हैं इसमें- बिकते ही तिजोरी गीली, हलक से ढलकते ही गला गीला, सुरूर चढ़ते ही घरवालों की आंखें भी गीली, ज्यादा चढ़ गई तो शराबी खुद गीला- डायरेक्ट नाली में गिरेगा। इस `गीली´ वस्तु के बारे में ज्यादा शब्द नहीं निकलते, जीभी सूख सी गई है।