मेरी रचना

लड़ाई चलेगी, कि खून बाकी है।
कलम लिखेगी, मजमून बाकी है।
राह में बिछा ले रोड़े लाख कोई,
कदम चलेंगे, कि जुनून बाकी है।
आंधियों से कह दो आकर आजमा ले,
चूल्हा जलेगा, कि चून बाकी है।
छोड़कर जाऊं मैं कैसे, ये दरीचे-ओ-दलब
तंग गलियों में अभी सुकून बाकी है।
वो देखो, इक गरीब, सर उठाकर चल रहा
लगता है इस शहर में, कानून बाकी है।
है कहां हिम्मत उड़ादे नूर मेरे चमन का,
मैंने अभी संभाल रखा गुलगून बाकी है।