अध्यक्ष जी की कुंवारी कॉल
मेरी पिछली लिखी एक भड़ास पर आज पत्रकार संघ के अध्यक्ष जी (श्रीगंगानगर) ने मुझे एक कुंवारी कॉल (मिस कॉल) भेजी। दोपहर का समय तो मौसम गर्म। नवरात्रों की शुरूआत के कारण मंदिर में जला दीपक तो हवा गर्म। कम्प्यूटर आधे घंटे से चल रहा था, सो सीपीयू गर्म। मैं भी आधे घंटे से कुर्सी पर बैठा था, इसलिए सीट भी गर्म। ऊपर से आई कुंवारी कॉल, जिनसे मैं हमेशा परेशान रहता हूं, इसलिए दीमाग गर्म होना भी लाजिमी ही था। (हालांकि इन गर्म वाक्यों का इस टिप्पणी से कोई लेना-देना नहीं। पर लिखते-लिखते मेरे मन का साहित्यकार जाग उठा, जिससे मैंने गर्म शब्द से कई वाक्यों की `रचना´ की। माफ करें- दीमाग न तब गर्म था न अब।) गौरतलब हो कि मैंने चार रोज पूर्व ही `पत्रकार संघ के चुनाव´ शीर्षक के द्वारा किसी जिला विशेष के अध्यक्ष व सचिव पर टिप्पणी की थी। हालांकि उन महोदयों का नाम मैंने प्रकाशित नहीं किया, परन्तु फिर भी जाने क्यों इन महोदय को स्वयं पर शक हुआ। ये अध्यक्ष जी मेरे पुराने परिचित (इतने कि जब ये ना तो अध्यक्ष जी थे और ना ही किसी अखबार के पत्रकार, छात्र संघ से जुडे़ होने के कारण पे्रस विज्ञप्तियां अवश्य लिखते थे) रहे हैं, मेरे मित्र भी हैं। इसलिए उन्होंने मुझे खास लहजे में मित्रता की दुहाई दी या यूं कहिये कि पत्रकारों की भाषा में `हड़काया´। चलिए मैंने ना तो तब ही उनके विषय में गलत लिखा था और ना ही अब लिख रहा हूं। केवल इतना ही कहना चाहता हूं कि आप कैसे हैं, यह आप निधाüरित कर ही नहीं सकते। यह तो निधाüरित करती है आपकी संगति। उस समय आप जिस संगति के साथ आए थे, हो सकता है वही गलत रही हो। चूंकि सम्माननीय पद पर आप हैं, इसलिए दोषारोपण हुआ आप पर। आप यदि किसी भी संघ का प्रतिनिधित्व करते हों, तो आपकी गरिमा के साथ ही संघ की गरिमा भी चलती है। और आप अपने साथ ऐसे पुछल्लों को रखकर उनकी मस्ती में भागीदारी देंगे, तो दोष तो आपका भी माना जाएगा। अब बात जब निकलेगी तो दूर तलक तो जाएगी ही। इसे रोकना ना तो तेरे बस में जूली, ना ही मेरे बस में।