तुम आखिर हो कौन
तुम आखिर हो कौन
बार-बार ख्वाबों में आकर
नींद उड़ाती हो, फिर...
फिर आंख खुलते ही चली जाती हो...
क्यों खुली आंखों के सामने
आने से डरती हो,
लेकिन जैसा कि मुझे लगता है...
मेरे जेहन में ही कहीं रहती हो
फिर भी तुम आखिर हो कौन
यह प्रश्न आज भी अनसुलझा रह गया
तुम मेरी चाहतों के माफिक दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हो...
और मैं अपनी उम्मीदों की तरह रोज थोड़ा-थ्ााेड़ा ढल रहा हूं...
लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है तुम्हें
और पड़े भी क्यों...
तुम आखिर हो कौन...
बार-बार ख्वाबों में आकर
नींद उड़ाती हो, फिर...
फिर आंख खुलते ही चली जाती हो...
क्यों खुली आंखों के सामने
आने से डरती हो,
लेकिन जैसा कि मुझे लगता है...
मेरे जेहन में ही कहीं रहती हो
फिर भी तुम आखिर हो कौन
यह प्रश्न आज भी अनसुलझा रह गया
तुम मेरी चाहतों के माफिक दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हो...
और मैं अपनी उम्मीदों की तरह रोज थोड़ा-थ्ााेड़ा ढल रहा हूं...
लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है तुम्हें
और पड़े भी क्यों...
तुम आखिर हो कौन...