गंदी कविता
सरकार गंदी हो गई, अखबार गंदे हो गए।
इस शहर में बंदे के, क्या-क्या धंधे हो गए।
बनियान गंदी हो गई, जुराब गंदे हो गए।
छुप-छुप के आ रहे जनाब, ख्वाब गंदे हो गए।
जुबान गंदी हो गई है, हाथ गंदे हो गए।
चल रहे जो साथ में, वो नाथ गंदे हो गए।
शाम गंदी हो गई, सवेर गंदे हो गए।
थे बड़े दिलेर जो, कुबेर गंदे हो गए।
यमुना गंदी हो गई है, संत गंदे हो गए,
अंट-शंट बोलते, महंत गंदे हो गए।
मल्हार गंदी हो गई, प्यार गंदे हो गए।
ना रही बहार तो, दिलदार गंदे हो गए।
इस शहर में बंदे के, क्या-क्या धंधे हो गए।
बनियान गंदी हो गई, जुराब गंदे हो गए।
छुप-छुप के आ रहे जनाब, ख्वाब गंदे हो गए।
जुबान गंदी हो गई है, हाथ गंदे हो गए।
चल रहे जो साथ में, वो नाथ गंदे हो गए।
शाम गंदी हो गई, सवेर गंदे हो गए।
थे बड़े दिलेर जो, कुबेर गंदे हो गए।
यमुना गंदी हो गई है, संत गंदे हो गए,
अंट-शंट बोलते, महंत गंदे हो गए।
मल्हार गंदी हो गई, प्यार गंदे हो गए।
ना रही बहार तो, दिलदार गंदे हो गए।