क्यों ना इन भगवानों का सर्टिफिकेट रद्द कर दिया जाए...

राजस्थान में कुछ दिनों से भगवानों की हड़ताल चल रही है। कई नवजातों को मिलाकर पचास से अधिक लोग इस हड़ताल के कारण मर चुके हैं। माना चिकित्सकों के साथ किसी कारणवश बदसलूकी हुई, लेकिन इसका इलाज यह तो कतई नहीं कि वे अपनी मनमर्जी पर उतर आएं। क्या इन भगवानों को जानबूझ़कर हत्याएं करने का आरोपी नहीं माना जाना चाहिए। क्या यह सेवाओं में लापरवाही का मामला नहीं बनता। सब आपराधिक मामले छोड़ भी दें तो क्या यह इन तथाकथित भगवानों का मेंटली डिस्ऑर्डर नहीं है।

राजस्थान की पूरी सरकार सोई हुई है। साथ ही सोया है आम आदमी और इन सबके साथ ही क्या यह भी मान लिया जाए कि न्यायालय भी सो गया है। सरकार चाहती तो पहले ही दिन समस्या का हल निकाल सकती थी, नहीं निकाल पाई। पर आम आदमी, जो सत्ता पलट सकता है। वह भी चुपचाप देख रहा है कि उसका बच्चा तो जिंदा है, फिर क्यों राड़ मोल ले। सुप्रीम कोर्ट जब देश की संसद को मुफ्त अनाज बांटने सहित कई और भी पचासों आदेश दे सकता है, तो क्या वहां की राज्य सरकार को कोई निर्देश नहीं दे सकता। यह काम राज्य का उच्च न्यायालय भी तो कर सकता है। क्यों नहीं न्यायालय स्वपे्ररित संज्ञान लेकर इन भगवानों को कटघरे में खड़ा करे और इन पर कार्यवाही करे। क्यों ना इनसे भगवान कहलाने का हक ही छीन लिया जाए। आम आदमी इन्हें भगवान क्यों माने बैठा है, समझ नहीं आ रहा। उसे इन भगवानों से वैसा ही व्यवहार करना चाहिए, जैसा एक चोर-डकैत या खूनी से किया जाता है। जब ये अपना धर्म भूल चुके हैं, सभी संवेदनाओं को तिलांजलि दे चुके हैं, अपनी सेवा के लिए खाई कसम तक भूल गए हैं, तो क्या इन भगवानों का सामाजिक बहिष्कार नहीं कर देना चाहिए।