रोड इंस्पेक्टर

'क्यों क्या हुआ?' पापा ने गंभीर होकर पूछा।
'बस ऐसे ही ...। अंकल कितने अच्छे हैं ना। हमें सारे दिन साइकिल पर घुमाते हैं।' छोटू ने कहा- 'और मुझे साइकिल चलाना भी सिखा रहे हैं।'
'और तुम कितनी सीख गए।' पापा ने पूछा।
'वो पैडल मारते हैं और मैं हैंडल संभाल लेता हूं। मेरे पैर नहीं पहुंचते ना।'
पापा को छोटू के साइकिल सीखने की खुशी थी।
'पर शंकर अंकल काम क्या करते हैं?' छोटू ने फिर पूछा।
'वो इंस्पेक्टर हैं, रोड इंस्पेक्टर।' पापा ने मुस्कुरा कर कहा।
'सच्ची, अंकल इंस्पेक्टर हैं। फिर ऑफिस क्यों नहीं जाते, सारे दिन घर क्यों रहते हैं।'
'बेटा रोड इंस्पेक्टर का काम होता है सड़कों की निगरानी करना। बस वो अपना काम यहीं कर देते हैं, तो ऑफिस क्यों जाए।'
छोटू को आज जितनी खुशी हो रही थी, वो शायद पहले कभी नहीं हुई। उसके शंकर अंकल इंस्पेक्टर हैं, यह जानकर वह कैसे चुप बैठ सकता था। वह भागकर अंकल के घर गया, तो मकान मालिक ने बताया कि शंकर दो दिन के लिए गांव गया है। छोटू का मन उदास हो गया। आज उसे वास्तव में शंकर अंकल की काबिलियत का अहसास हुआ था। वह अंकल से उनके इंस्पेक्टरी के अनुभव जानना चाहता था। सर झुकाकर धीरे-धीरे घर की तरफ चल पड़ा। अगले दिन स्कूल में सभी दोस्तों को मालूम चल गया कि छोटू के अंकल इंस्पेक्टर हैं। जैसे-तैसे दो दिन गुजर गए। आज छोटू का स्कूल में मन नहीं लगा। छुट्टी होते ही सीधे शंकर अंकल के घर पहुंचा। वहां भीड़ लगी हुई थी। बाहर पुलिस की गाड़ी खड़ी थी और कई पुलिस वाले भी। छोटू को लगा कि ये लोग उसके अंकल से मिलने आए हैं। वह भीड़ से आगे निकलकर खड़ा हो गया।
एक पुलिस वाला शंकर से पूछताछ कर रहा था। अचानक बात करते-करते उसने शंकर के एक झापड़ मार दिया। फिर बाद में धक्के मारते हुए उसे जीप में धकेल दिया। कुछ पुलिस वाले दूसरी तरफ से दो जनों को पकड़कर लाए और जीप में बैठाकर साथ ले गए। छोटू सब देख रहा था। आस-पास के लोगों में चर्चाएं थी। आज सुबह ही शंकर के मकान मालिक के घर चोरी हो गई। पुलिस ने शक के आधार पर दो जनों को पकड़ा, लेकिन शंकर के दो दिन से लापता होने के कारण वह भी चपेट में आ गया। रात तक शंकर को छोड़ दिया गया। उसका चोरी में कोई हाथ नहीं था। अगली सुबह छोटू सबसे पहले शंकर अंकल के घर गया।
'कल पुलिस वाले आपसे मारपीट क्यों कर रहे थे।' छोटू ने शंकर से पूछा।
'बस बेटा समय खराब था।'
'तो आपने उन्हें बताया क्यों नहीं कि आप भी पुलिस में हो।' छोटू ने कहा।
'तुम्हे किसने कहा, मैं पुलिस...' शंकर को हंसी आ गई।
'पापा ने, उन्होंने ही बताया कि आप इंस्पेक्टर हो।'
'और क्या-क्या बताया?' शंकर ने पूछा।
'यही कि आप रोड इंस्पेक्टर हो और सड़कों की निगरानी करते हो।' छोटू ने पापा से हुई सब बात बता दी। शंकर चुपचाप सुनता रहा।
'चलो ना अंकल। थोड़ी साइकिल चलाते हैं।' छोटू ने शंकर का हाथ पकड़कर खींचा।
'नहीं... नहीं बेटा शाम को... अभी तुम घर जाओं' कहकर शंकर कुछ सोचने लग गया और छोटू अपने घर को चला गया।
थोड़ी देर बाद छोटू ने शंकर को साइकिल से कहीं जाते देखा। उसने पीछे से कई आवाजें दी, पर शंकर ने नहीं सुनी। शंकर आज शाम देर से घर लौटा, इसलिए छोटू उससे मिल भी नहीं पाया। अगले दिन सुबह-सुबह छोटू फिर उसके घर गया, तो ना शंकर अंकल थे ना उनकी साइकिल। शंकर ने इंस्पेक्टरी छोड़कर चीनी मिल में गार्ड की नौकरी कर ली थी।