घूम रही माया ठगनी...

कई दिनों से कोई पोस्ट नहीं लिख पाया। कुछ वक्त की कमी और कुछ अपनी सुस्ती के कारण। पांचेक दिन पहले ही गंगानगर में छुट्टी बिताकर जयपुर आया हूं। वहां बहुत सारा समय टीवी के आगे गुजरा। केबल पर कई नई-पुरानी फिल्में देखीं। एक फिल्म जो बेहद उम्दा लगी- वो थी 'माया मछंदर'। चैनल बदलते वक्त यह फिल्म सामने आ गई। मेरा मानना है कि ऐसी फिल्मों को मित्रों के साथ नहीं देखना चाहिए (ये बात अलग है कि वे लोग देखने भी नहीं देंगे)। इन जैसी फिल्मों को पूरी रूमानियत के साथ बंद कमरे में अकेले देखना ही सुखकर होता है। जब आप हर दृश्य के बाद खुश होते हैं और किसी गाने (पौराणिक फिल्मों में भजन) के दौरान हाथ ऊपर-नीचे हिला-हिलाकर संगीत और शब्दों का आनंद लेते हैं। हर शब्द में एक ना एक भाव छिपा होता है।

वैसे फिल्म 'माया मछंदर' की कहानी टोटली पौराणिक है। मछंदरनाथ नाम के एक साधु होते है, जो एक रईस मां के बेटे गोरख को अपना शिष्य बना लेते हैं। गोरखनाथ को दीक्षा देने के बाद मछंदरनाथ उसे पूरे भारत में भ्रमण कर सत्य का प्रकाश फैलाने को कहते हैं और स्त्री जाति से दूर रहने की चेतावनी देते हैं। चलते समय गोरखनाथ जो भजन गाता है, वह मैंने कई बार जागरणों में सुना हुआ था। लेकिन वह किसी फिल्म का ओरीजनल गीत (भजन) होगा, नहीं सोचा था। शायद आपने भी सुना हो, भजन के बोल हैं-

घूम रही माया ठगनी, ठग लेगी तेरी गठरिया रे
मोह का पिंजरा ये जग है, यहां कल की नहीं खबरिया रे
घूम रही माया ठगनी...
ऊपर तेरे ऊंचा परबत, नीचे गहरी खाई है
मौत पकड़ ले जायेगी इक दिन, चले नहीं चतुराई है
भले-बुरे हर काम पे, उस मालिक की कड़ी नजरिया रे...
घूम रही माया ठगनी...

संगीत इतना लाजवाब बना था, कि पूरे गीत को सुने बगैर मन मान ही नहीं सकता। गोरखनाथ भारत भ्रमण पर चला जाता है और मछंदरनाथ समाधि में लीन हो जाते हैं। समाधिस्थ मछंदरनाथ का सूक्ष्म शरीर त्रिया राज में घूमने जाता है। त्रिया राज्य को पुरुषविहीन होने का शाप था। लेकिन मछंदर वहां प्रवेश कर जाते हैं। राज्य की महारानी सुलोचना (मैंने नाम बार-बार सुना है, लेकिन फिल्म बहुत पुरानी होने के कारण साउंड तकनीक उतनी कारगर नहीं थी, इसलिए इस नाम में हेरफेर होना सहज है) मछंदर को देखकर मुग्ध हो जाती है। मछंदरनाथ भी उसके प्रेम में फंस जाते हैं। उधर मछंदरनाथ के चेले भी भ्रष्टाचारी हो जाते हैं और वहां भी स्त्रियाँ घूमती रहती हैं। अचानक गोरख आश्रम पर आता है, तब उसे मालूम चलता है कि उसके गुरू मछंदरनाथ ने विवाह कर लिया है और उनके एक पुत्र भी है। उधर एक दिन मछंदर के दरबार में जब गीत-संगीत का कार्यक्रम चल रहा होता है, तब मृदंग के स्वर में से 'जाग मछंदर गोरख आया, जाग मछंदर गोरख आया' की ध्वनि पूरे महल में गूंज जाती है। मछंदर को तो रानी जाने से रोक लेती है, लेकिन उसका पुत्र मीननाथ गोरखनाथ के पीछे-पीछे चला जाता है, और एक खाई में गिरने से उसकी मौत हो जाती है। मीननाथ का शव लेकर गोरखनाथ त्रियाराज में अपने गुरू के पास छोड़ देता है।

अब जो दृश्य वाकई दिल भेदने वाला था, वो है-
अपने बेटे के शव को देखकर रानी सुलोचना अपने पति से कहती है कि आप बहुत तेजस्वी हो, आपने कईयों को जीवित किया है, इसे भी जीवित करो। मछंदरनाथ बहुत प्रयास के बाद भी मीननाथ को जीवित नहीं कर पाता, तो गोरखनाथ के पैरों में गिर जाता है और पुत्र के प्राण मांगता है। गोरखनाथ अपने गुरू के नाम के महिमा बताता है और मीननाथ का शव उठाकर 'जय गुरू मछंदरनाथ' का उच्चारण करते हुए आकाश में फेंक देता है। मीननाथ जीवित हो जाता है। साथ ही साथ त्रियाराज का शाप भी समाप्त हो जाता है। मछंदरनाथ और गोरखनाथ अपने आश्रम में आ जाते हैं और मीननाथ भी सन्यासी बन जाता है। सन 1951 में बनी इस फिल्म में मछंदरनाथ का किरदार पौराणिक फिल्मों की जान अभि भट्टाचार्य ने निभाया है। गोरखनाथ के बारे में श्योर तो नहीं हूं, लेकिन शायद इस किरदार में त्रिलोक कपूर थे। फिल्म के गीत और द्रश्य कितने सुंदर हैं, इसका अंदाजा आप फिल्म देखकर ही लगा सकते हैं। अगर मौका मिले और फिल्म की सीडी भी तो जरूर देखना...