बैंड बजा देंगे `भैंस की टांग´
वेलेन्टाइन डे बहुत करीब है। प्रेमी-जोड़े हालांकि रोज ही तैयार रहते हैं, लेकिन इस दिन के लिए बेसब्र और उधर इस दिन के विरोधी भी मुस्तैद। एक तरफ प्रेम धर्म तो दूसरी ओर लट्ठ धर्म। आज यूनिवर्सिटी के दो-एक मित्रों से मिलना हुआ। उनका कहना था- `शनि को क्या कर रहा है। कुछ नहीं तो हमारे साथ चलना। बहुत मजा आएगा। ये देख बहुत चिपकके बैठती है... ´ पास से ही एक बाइक सवार, जिसने पीछे एक लड़की को बिठा रखा था (हो सकता है रिश्ते में भाई-बहन ही हों) को देखकर बोला- `... उस दिन दिख गई, तो बैंड बजा देंगे भैंस की टांग।´ मेरे ये मित्र वही हैं, जो राह चलती किसी भी लड़की को तब तक घूरते हैं, जब तक वह कोई गाली ना निकाल दे अथवा रोड क्रॉस ना कर जाए। और आज वे ही समाज में सुधार लाने की बात कर रहे हैं। मुझे मालूम नहीं चला कि वे लोग क्यों ऐसा कर रहे हैं। शायद इसलिए कि कभी उन्होंने भी प्रयास किया हो, पर सेकेण्ड पार्टी द्वारा नकारे गए हो। हालांकि इन लोगों का कहना है कि वे प्रेम के नहीं, पाश्चात्य संस्कृति व भौंडेपन के विरोधी हैं। तर्क में भगवान राम का नाम लेते हैं, लेकिन क्या शहर में लट्ठ-हॉकी लेकर घूमने और शहर-भर में हो-हल्ला मचाने से इनका धर्म पूरा हो जाता है। चलिए जो भी हो, अपना-अपना धर्म, मेरा चेप्टर क्लॉज- `भैंस की टांग´।
और इधर इनका धर्म...
जयपुर के मोती डूंगरी गणेश मंदिर को हाईटेक किया गया है, दुग्धाभिषेक के लिए। हर सत्रह दिन बाद पुष्य नक्षत्र में गणेश जी का दुग्धाभिषेक किया जाता है और श्रद्धालुओं में इस दौरान होने वाली धक्का-मुक्की खत्म करने के लिए मंदिर ट्रस्ट ने हाइटेक सिस्टम अपनाया है। इस सिस्टम में मंदिर का ही एक आदमी श्रद्धालुओं से दूध लेकर उसे टंकी में डाल देगा। टंकी से पाइप के द्वारा दूध गणेश जी की मूर्ति तक पहुंचेगा और अपने आप ही उनका दुग्धाभिषेक हो जाएगा।
इस दिन कम से कम पचास-साठेक लीटर दूध तो हो ही जाता है। सारा का सारा दूध पुजारी के पैरों से होता हुआ नाली में बह जाता है। आगे वह मंदिर ट्रस्ट की ही किन्हीं गायों-भैसों के काम आता है अथवा व्यर्थ जाता है- मुझे नहीं मालूम, लेकिन इतना अवश्य कि किसी इनसान के पीने लायक तो नहीं बचता। गणेश जी मूर्ति तो उसी रंग की रहनी है चाहे जितना भी दूध से नहलाओ। अगर गणेश जी इस दूध से मोटे भी होते हों, तो भी पिला दो उन्हें दूध, लेकिन व्यर्थ में इतना गौधन बर्बाद करना मेरी समझ से परे। हालांकि धार्मिक क्षेत्र में ऐसे छोटे-मोटे दुग्धाभिषेक तो रोज ही किसी ना किसी मंदिर में होते रहते हैं, इससे बड़े-बड़े और भी बहुत आयोजन होते हैं। किसी की आस्था के बारे में टिप्पणी करना मेरा उद्देश्य नहीं फिर भी इतना जरूर- कि यदि यही दूध शहर के किसी अनाथालय में भिजवा दिया जाता, हॉस्पिटल में गरीब मरीजों को पिला दिया जाता, तो कितना अच्छा रहता। बाकी इनका धर्म, इनके हाथ, ये चेप्टर भी क्लॉज- `भैंस की टांग´।
रामजी करेंगे बेड़ा पार...
बीजेपी को फिर राम याद आए। पिछली बार भी याद थे, लेकिन कुर्सी तक पहुंचते-पहुंचते कई समस्याएं आ गईं। हर बार चुनावों के टाइम इन्हें रात को राम जी स्वप्न में दिख जाते हैं। बयान आया है- सत्ता में पहुंचते ही राम मंदिर बनवाएंगे। लेकिन साथ ही साथ एक शर्त भी- कि अपने बूते पर सत्ता तक पहुंचे तो। तो यहां यह साफ होना चाहिए कि अपने बूते तो आप लोग सत्ता तक पहुंच नहीं सकते और `लक बाईचांस´ पहुंच भी गए, तो आप तो क्या आपका बाप भी राम मंदिर उसी जगह नहीं बनवा सकता। जनता सब जानती है, पर उसके पास ऑप्शन नहीं है। मत उसका अधिकार है, उसे मतदान करना अनिवार्य है और सामने उसे चोर, उठाईगीरे और ठग में से किसी एक को चुनना है। क्या करे,`भैंस की टांग´ किसी को तो चुनना पड़ेगा ही।
और इधर इनका धर्म...
जयपुर के मोती डूंगरी गणेश मंदिर को हाईटेक किया गया है, दुग्धाभिषेक के लिए। हर सत्रह दिन बाद पुष्य नक्षत्र में गणेश जी का दुग्धाभिषेक किया जाता है और श्रद्धालुओं में इस दौरान होने वाली धक्का-मुक्की खत्म करने के लिए मंदिर ट्रस्ट ने हाइटेक सिस्टम अपनाया है। इस सिस्टम में मंदिर का ही एक आदमी श्रद्धालुओं से दूध लेकर उसे टंकी में डाल देगा। टंकी से पाइप के द्वारा दूध गणेश जी की मूर्ति तक पहुंचेगा और अपने आप ही उनका दुग्धाभिषेक हो जाएगा।
इस दिन कम से कम पचास-साठेक लीटर दूध तो हो ही जाता है। सारा का सारा दूध पुजारी के पैरों से होता हुआ नाली में बह जाता है। आगे वह मंदिर ट्रस्ट की ही किन्हीं गायों-भैसों के काम आता है अथवा व्यर्थ जाता है- मुझे नहीं मालूम, लेकिन इतना अवश्य कि किसी इनसान के पीने लायक तो नहीं बचता। गणेश जी मूर्ति तो उसी रंग की रहनी है चाहे जितना भी दूध से नहलाओ। अगर गणेश जी इस दूध से मोटे भी होते हों, तो भी पिला दो उन्हें दूध, लेकिन व्यर्थ में इतना गौधन बर्बाद करना मेरी समझ से परे। हालांकि धार्मिक क्षेत्र में ऐसे छोटे-मोटे दुग्धाभिषेक तो रोज ही किसी ना किसी मंदिर में होते रहते हैं, इससे बड़े-बड़े और भी बहुत आयोजन होते हैं। किसी की आस्था के बारे में टिप्पणी करना मेरा उद्देश्य नहीं फिर भी इतना जरूर- कि यदि यही दूध शहर के किसी अनाथालय में भिजवा दिया जाता, हॉस्पिटल में गरीब मरीजों को पिला दिया जाता, तो कितना अच्छा रहता। बाकी इनका धर्म, इनके हाथ, ये चेप्टर भी क्लॉज- `भैंस की टांग´।
रामजी करेंगे बेड़ा पार...
बीजेपी को फिर राम याद आए। पिछली बार भी याद थे, लेकिन कुर्सी तक पहुंचते-पहुंचते कई समस्याएं आ गईं। हर बार चुनावों के टाइम इन्हें रात को राम जी स्वप्न में दिख जाते हैं। बयान आया है- सत्ता में पहुंचते ही राम मंदिर बनवाएंगे। लेकिन साथ ही साथ एक शर्त भी- कि अपने बूते पर सत्ता तक पहुंचे तो। तो यहां यह साफ होना चाहिए कि अपने बूते तो आप लोग सत्ता तक पहुंच नहीं सकते और `लक बाईचांस´ पहुंच भी गए, तो आप तो क्या आपका बाप भी राम मंदिर उसी जगह नहीं बनवा सकता। जनता सब जानती है, पर उसके पास ऑप्शन नहीं है। मत उसका अधिकार है, उसे मतदान करना अनिवार्य है और सामने उसे चोर, उठाईगीरे और ठग में से किसी एक को चुनना है। क्या करे,`भैंस की टांग´ किसी को तो चुनना पड़ेगा ही।