पॉलिटिक्स की डर्टी पिक्चर

अमर उजाला कॉम्पैक्ट के संपादकीय में प्रकाशित आलेख।

चार दिन पहले एक राष्ट्रीय पार्टी के पूर्व अध्यक्ष को सजा सुनाते हुए जज कंवलजीत अरोड़ा की टिप्पणी कि राजनीतिक भ्रष्टाचार देश में वेश्यावृत्ति से भ्‍ाी बड़ा खतरा है, बिल्कुल सटीक है। सही मायनों में देखा जाए तो यह सिर्फ पॉलिटिक्स की डर्टी पिक्चर का ट्रेलर ही है, जिसमें हीरो सबके सामने बेहिचक कहता फिरता है कि हमें होली खेलने का शौक तो है ही, पिचकारी में भी दम रखते हैं। यह एक ऐसी पिक्चर है, जिसमें सचिन के संसद पहुंचने पर तो सियासत शुरू हो जाती है, लेकिन पचासों बार चीनियों के भारतीय सीमा में घ्‍ाुस आने की बात मामूली मानी जाती है। एक बैनर का हीरो देेश के गद्दार को भगाने में मदद करता पाया जाता है और दूसरे बैनर का सिर्फ पांच लाख के लिए देश से गद्दारी करता रिकॉर्ड हो जाता है।

अभिनेता शाहरुख खान को अमेरिकी एयरपोर्ट पर बस रोक भर लेना बड़ा इश्यू बन जाता है, अमेरिका भी दो घंटे में सॉरी बोल देता है। उधर देश के प्रतिनिधि के रूप में ओलंपिक क्वालीफायर शूटराें को लंदन में सामान समेत उठाकर होटल से बाहर निकाल देने पर भी कोई सुनवाई नहीं होती। देश के भूखों लोगों की गिनती शायद ही इनको पता हो, लेकिन खुद की मूर्तियां कितनी लगी हैं, सब मालूम है। एक सत्ता में आता है, तो दूसरे के फैसले पलट देता और दूसरा आता है, तो पहले के। बस इन्हीं सबके साथ फिल्म का इंंटरवेल हो जाता है और आम जनता दस रुपये के पॉपकॉर्न खाकर खुश हो जाती है।

ताजा तरीन मामला बंगारू लक्ष्मण का है। एक स्टिंग में कैद होने के 11 साल बाद बंगारू को सजा हुई है। लगभग 73 साल के बंगारू के पास कई रास्ते खुले हैं। वे ऊपरी कोर्ट में फैसले के खिलाफ जा सकते हैं। देश में पहले से लगभग 38 लाख मामले उच्चतम और उच्च न्यायालय में लंबित हैं। अधीनस्‍थ अदालतों में 2.21 करोड़ मामले इन आंकड़ाें से अलग हैं। हमारे राजनीतिज्ञ इन्हीं सब का फायदा उठाते हैं। अब यही मान लें कि बंगारू को ऊपरी कोर्ट से जमानत मिल जाती है। मामला फिर से कोर्ट की सुनवाई के लिए चला जाता है, तो क्या गारंटी है कि अगले फैसले के 11 साल नहीं लगेंगे। और इसकी तो बिल्कुल भी गारंटी नहीं है कि तब दी गई सजा को भ्‍ााेगने के लिए बंगारू जीवित भी होंगे।

फिल्म यहीं नहीं खत्म होती। राजनीतिक भ्रष्टाचार के ढेरों मामले सामने हैं। हजारों रील में प्रदर्शित हो रही इन पिक्चरों में यूथ आइकॉन चालीस बाद के होते हैं और पचासी पार भ्‍ाी कुर्सी छोड़ते डर लगता है। कोई कहता है, उसके मुंबई को बिहारियों ने भिखारी बना दिया। दूसरा कहता है हाथी ने यूपी वालों को भिखारी बना दिया। लेकिन पब्लिक बेचारी- उसे मालूम है, फिर भ्‍ाी मानने से डरती है कि इन लोगों ने देश को भिखारी बना दिया है। पब्लिक लगातार बेवकूफ बन रही है। हम पर हमला करने वालों पर इनाम कोई तीसरा तय करता है। चार दिन हमारे हीरो लोग उस पर बवाल कर देते हैं। छठवें दिन तीसरा मुकर जाता है, उसने कोई इनाम नहीं रखा। हमारे हीरो मुंह पर उंगली रखकर ‘नो कमेंट’ की मुद्रा बना लेते हैं।

एक बैनर टूजी के नाम पर देश को लूटता है, तो दूसरा जमीन और फ्लैट के घपलों से। पब्लिक के दिमाग पर ज्‍यादा लोड न पड़े, इसीलिए बीच-बीच में किन्‍हीं दूसरे पात्रों को घुसा दिया जाता है। पाक-साफ जनरल के खिलाफ ‘मूवमेंट’ की खबर छाप दी जाती है। दीदी को अपने कार्टून पर गुस्सा आता है, तो दादी रिटायरमेंट के बाद अपने घर को लेकर विवादों में आ जाती है। टेढ़े सभ्‍ाी हैं, पर किसी की सीडी निकल जाती है, कोई सीधा निकल जाता है। लेकिन पब्लिक का इश्क बिल्‍कुल सूफियाना है। हजारों-लाखों हाशमी देश को चूसते जा रहे हैं और पब्लिक बहुत-कुछ चाहते हुए भ्‍ाी इनसे कुछ नहीं चाहती। वो एक-आध बार बीच-बीच में उठकर ऊ ला ला पर सीटी बजा देती है। ऊल-जलूल डायलॉग पर मुस्कुरा देती है। और अंत में दुष्यंत कुमार का बेहतरीन शेर- ‘भूख है तो सब्र कर, रोटी नहीं तो क्‍या हुआ, आजकल दिल्ली में है- ज़ेरे बहस से मुद्दआ।’

आखिर सिलसिला शुरू कैसे होगाः

दिमाग में दो दिनों से यह सवाल कौंध रहा है कि आखिर भानुरेखा जानेसां के संसद चले जाने पर सिलसिला कैसे शुरू हो जाएगा। चलिए मीडिया ने तो खबर बना ही दी। 70 साल पार कर चुका नायक। उसकी 68 वर्षीय पत्‍नी संसद में पहले से। अब यदि 58 साल की नायिका भानुरेखा उर्फ रेखा भ्‍ाी संसद चली जाए, तो क्या जरूरी है कि नायक और नायिका में फिर से सिलसिला शुरू होगा ही। और होगा भी तो संसद में नायक के आए बगैर कैसे होगा... दिमाग खपा रहा हूं।