जनार्दन के जन्मदिन का इन्तजार कब तक करेगी जनता

कल माया मैडम का 54वां जन्मदिन था। मतलब मैडम हो गई पूरे तरेपन की। तोहफे भी मिले, पर जिसका जन्मदिन था उसको नहीं, उसी की तरफ से। वो भी पूरे 74 अरब के। देखे हैं कभी 74 अरब के तोहफे। यहां देखिए- ऊर्जा कृषि सुधार योजना (2600 करोड़), गरीबों को 56180 मकान (1400 करोड़), 101 पुल (711 करोड़), 44 नए मार्ग (823 करोड़), 27 विद्युत उपकेन्द्र (453 करोड़) और भी कई जैसे- पेयजल, सीवरेज, पीजीआई ट्रोमा सेंटर, बैराज, भवनों का शिलान्यास, बस अड्डा और अठाईस-एक हजार कैदियों की रिहाई।

एक सबसे बड़ा तोहफा तो बताना ही भूल गया- उत्तरप्रदेश मुख्यमंत्री महामाया गरीब आर्थिक योजना, जिसमें 30 लाख लोगों को मिलेंगे 300 रुपए हर महीने। अब यह मदद वाकई में गरीब को मिल पाएगी या नहीं और मिलेगी भी तो कितने महीनों बाद या कितने जरूरतमन्दों को, यह जानना बेहद जरूरी है। केवल जनता को बेवकूफ बनाने के लिए ही तो तोहफों की झड़ी नहीं लगा दी गई। माया मेमसाब ने यहां भी अपने दोधारी तलवार वाला दिमाग दिखा ही दिया। योजना का नाम देखिए- इसमें 'उत्तरप्रदेश मुख्यमंत्री महामाया' इन तीन शब्दों का होना क्यों जरूरी है। यहां सिर्फ मुख्यमंत्री आर्थिक योजना भी काफी था। क्या उत्तरप्रदेश के गरीब को हरियाणा की मुख्यमंत्री राहत योजना से भी पैसा मिल सकता है? क्या केन्द्र से आने वाली मदद पर गरीब मुख्यमंत्री को दुआ नहीं देते। वे तो उस चपड़ासी तक की चरणचंपी करते है, जिसके कारण उन्हें राहत मिलती है। मुख्यमंत्री ने यहां एक तीर से दो निशाने साध लिए- स्वयं का नाम भी योजना में दे दिया और नहीं भी दिया। यह योजना हिट हो जाती है और अगला मुख्यमंत्री भी इसे चलाना चाहे, तो माया का नाम तो अवश्य साथ चलेगा। दूसरा स्वयं को महामाया के रूप में प्रमोट करने का। गरीबों के बीच देवता या महान बनने की लालसा कभी राजनीतिज्ञ के मन से नहीं निकल सकती।

ऊपर जितने भी तोहफे गिनाए गए हैं, क्या आपको लगता है कि कोई भी तोहफा है। कौनसा ऐसा विषय है, जिसकी राज्य को पहले से जरूरत नहीं है, तो फिर क्यों इतने दिन तक विकास को लटकाया गया। सिर्फ इसलिए कि माया मेमसाब का जन्मदिन इतिहास में दर्ज हो जाए। इसका एक सरकारी जवाब यह हो सकता है कि खजाने में पैसे कमी है। पर यदि वाकई पैसे की कमी है, तो क्यों वाहवाही बटोरने के लिए प्रदेश के कर्ज तले दबाया गया। बड़े लोगों के जन्मदिन पर भिखारियों को, गरीब मरीजों को फल-फू्रट या तोहफे बांटने का रिवाज है। पर क्या माया मेमसाब ने पूरे उत्तरप्रदेश को ही गरीब भिखारी या मरीज समझ लिया, जो अपने जन्मदिन पर प्रदेश की मूलभूत आवश्यकताओं को ही तोहफों के नाम पर बांट दिया। क्यों देश के राजनीतिज्ञ दिखावे से जवाहरलाल, बाबा साहेब, गांधी या पटेल बनना चाहते हैं। क्यों नहीं वाकई उनके आचार-विचार अपना लेते। अगर वास्तव में उनके विचार महापुरुषों जैसे हो जाएं, तो अपनी मूर्तियां चौक पर या पार्कों में स्वयं लगवाने की आवश्यकता न पड़ेगी, आप जनता के दिलों में रहोगे, और मूर्तियां क्या वहां मन्दिर भी बन जायेंगे।