घर का चिराग
`नीलू को मुंबई ले जाना पड़ेगा´- सुनील ने लड़खड़ाती आवाज में वंदना को बताया। वंदना समझ नहीं पा रही थी- आखिर चार घंटे में ही ऐसा क्या हो गया कि डॉक्टरों ने उसके लाडले नीलाक्ष को मुंबई रैफर कर दिया। अभी सिर्फ छह साल का ही तो है। आखिर हुआ क्या है- वंदना ने धीरे से पूछा। अरे तुमने टिकट बुक करवाई या नहीं। सुनील के बाबा भागते हुए आए और सुनील के कंधे पर हाथ रख दिया। पीछे-पीछे सुनील की मां भी आ गई- बहु को संभाला- कुछ नहीं होगा नीलू को, चल रहे हैं ना मुंबई। पर वंदना की आंखें कुछ और ही देख रही थी। आज सुबह ही तो वो नीलाक्ष को नहलाकर स्कूल लेकर गई थी। बिल्कुल पास ही था। इस गली मेंे घर, अगली गली में स्कूल। दूसरी क्लास में था नीलू। रिजल्ट डिक्लेयर होने वाला था। मालूम था, अच्छे माक्र्स आएंगे, पूरे दो महीने घर के कामकाज छोड़कर पढ़ाया जो था उसे। जाते ही क्लास टीचर प्रमिला मैडम ने बधाई दी- नीलू के नाइंटी टू परसेंट माक्र्स आने की। हां तो कब बुला रही हो जी घर पर। शाम को पार्टी है ना- क्लास टीचर ने वंदना को कहा। हां-हां जरूर- वंदना अपने छह साल के बच्चे की कामयाबी पर फूली नहीं समा रही थी। नीलू का हाथ थामे वो फिर घर की तरफ चल पड़ी। `मम्मा मैं थोड़ी देर विक्की के साथ खेल लूं।` दूर खड़ा विक्की भी उसे ही देख रहा था। वो भी सात-एक साल का ही है। दोनों एक ही क्लास में है। उसकी मम्मी रेखा के साथ वंदना की भी अच्छी जमती थी। पर फिर भी शायद वंदना नीलू को जाने ना देती, अगर नाइंटी टू परसेंट की खुशी ना होती। पर जल्दी आना- नीलू का हाथ छोड़ दिया वंदना ने। `जल्दी नहीं आऊंगा तो कहां जाऊंगा, तुम्हारे पास तो आना ही पड़ेगा।´ नीलू ने जैसे अपनी मम्मा को चिढ़ाते हुए कहा।
अरे बहु क्या हुआ नीलू का- सासु मां ने घर पहुंचते ही वंदना से पूछ लिया। आपका पोता है, छोटी-मोटी पोजिशन पर थोड़े ही आएगा, स्कूल में फस्र्ट आया है- वंदना ने साथ ही साथ मिठाई की मांग भी कर दी और रसोई मेंे अपने काम में लग गई। सुनील को भी स्पष्ट हिदायत दे दी गई थी कि शाम को मिठाई के साथ ही घर आना। खाना खाकर सुनील भी ऑफिस के लिए निकल गया। वंदना अभी रसोई में ही थी कि भागता हुआ नीलू आ गया। `मम्मा भूख लगी है।´ अरे कहां मिट्टी में लोट-पीटकर आया है- नीलू के गंदे और मिट्टी में भरे कपड़े देखकर वंदना ने उसे डांट दिया- कौन कहेगा तेरे को दो घंटे पहले नहाया है। हाथ-पैर धोकर आया नीलू, तो उसे खाना मिला। आधा खाकर नीलू ने थाली बीच में ही छोड़ दी। चुपचाप पूरा खाना खा- वंदना ने पहले ही टोक दिया। `मम्मा प्लीज मेरे सर में दर्द हो रहा है।´ नाटक मत कर, खाना खत्म कर तभी खड़ा होना नहीं तो बैठा रह- वंदना ने फिर डांट दिया। नीलू ने थोड़ा सा और खाया। वंदना रसोई में बर्तन साफ कर रही थी। नीलू थाली उठाकर वाशबेसिन में रखने लगा। वाशबेसिन थोड़ा ऊंचा था और नीलू का हाथ वहां तक पहुंचा नहीं, इसलिए ऊपर-नीचे होते-होते नीलू का माथा वंदना के हाथों को छू गया। वंदना का कलेजा ही हिल गया- हाय नीलू तेरा माथा इतना गर्म कैसे है। दुबारा छूकर देखा और उसे गोद में उठाकर सासु जी के पास ले आई - मम्मी जी देखो इसे कितना तेज बुखार है। सासु ने भी वंदना को ही डांटा- तुझे कितनी बार कहा है, बच्चे को धूप में मत खेलने दिया कर। पर मेरी यहां कोई सुने तो ही। जा दवाईयों के डिब्बे में से बुखार की गोली निकाल कर दे। मेरा लाडला बेटा कितना गर्म हो रहा है। वंदना चुपचाप गई और एक टेबलेट और पानी का गिलास ले आई- ले नीलू, खड़ा हो। पर नीलू चुपचाप सोया रहा। दादी मां धीरे-धीरे नीलू के माथे पर हाथ फेर रही थी। शायद इसीलिए नीलू को नींद आ गई- दादी ने यह सोचकर उसे हिलाया। नीलू ने जब कोई हरकत नहीं की, तो दादी का पूरा शरीर कांप उठा, जैसे कोई करंट लग गया हो। वंदना भी हिल गई- मम्मी जी नीलू को क्या हो गया। मैं उनको मोबाइल कर देती हूं। अभी रास्ते में ही होंगे। उधर नीलू के बाबा (दादा) जो दो घर दूर अपनी मंडली के साथ ताश खेल रहे थे, उनको भी वंदना भागकर कह आई थी। वे भी तेज कदमों से घर की ओर भागे। रास्ते में सुखीजा जी, जो कार से ऑफिस जा रहे थे, बाबा को भागते हुए देखकर बोले- अरे शर्मा जी नमस्कार, कहां भागे जा रहे हैं। बाबा ने नमस्कार कहते हुए नीलू के बेहोश होने के बारे में बताया। सुखीजा जी भी कार को रोककर घर में गए, तो देखा नीलू का चेहरा बिलकुल सूख सा गया था। हाथ लगाकर देखा तो बहुत तेज बुखार। बहु जोशी जी को फोन करके पूछो çक्लनिक पर हैं या नहीं, नीलू को फौरन लेकर चलना पड़ेगा- बाबा ने वंदना को आवाज लगाई। वंदना ने शायद आवाज सुनी नहीं। सुखीजा जी ने अपने मोबाइल से ही फोन मिलाया- तो मालूम चला कि डॉक्टर जोशी शाम को वापिस आएंगे, अभी दिल्ली गए हैं, एक कॉन्फे्रंस में भाग लेने। हे बालाजी महाराज, मेरे नीलू को सही कर दो। इसी दिवाली सब आपके दर्शन करने आएंगे- उधर वंदना मंदिर के आगे आंख बंद कर प्रार्थना कर रही थी।
सुखीजा जी ने बाहर जाकर कार स्टार्ट कर ली और अंदर आवाज दी। बाबा ने नीलू को गोद में उठाया। वंदना ने भी घर जल्दी से बंद कर दिया। `सरकारी हॉçस्पटल में कोई केयर नहीं होती, पास में ही बड़ा हॉçस्पटल है, अच्छे डॉक्टर हैं, वहीं चलते हैं` - सुखीजा जी ने सलाह दी। हॉçस्पटल पहुंचे तो डॉक्टर ने नाड़ी चैक की और एडमिट करने को कहा। पांच मिनट बाद ही दो डॉक्टर और पहुंचे। नीलू की आंख, जीभ चैक की। ब्लड का सैम्पल की जांच कर उसे सरकारी हॉçस्पटल रैफर कर दिया। बाबा ने पूछा- क्या हुआ है, क्या आपके यहां इलाज नहीं हो सकता, कुछ तो दवाई, इंजेक्शन दो, बाद में ले जाएंगे सरकारी हॉçस्पटल में भी। डॉक्टर ने साफ बता दिया कि ब्लड बनना बंद हो गया है, देर ना करें। इतने में सुनील भी हॉçस्पटल पहुंच गया। उसे वंदना ने मोबाइल कर नीलू के हॉçस्पटल में एडमिट होने के बारे में बता दिया था। नीलू के चेहरे को देखकर एक बार तो सुनील की आंखों से आंसू निकलने ही वाले थे, पर उसने शायद यही सोचकर आंसुओं को रोका कि मेरे से बुरी हालत तो वंदना, मां और बाबा की है, फिर भी उन्होंने अपने आपको संभाल रखा है।
सरकारी हॉçस्पटल में एक अधिकारी सुनील का परिचित था। सुनील ने उसे फोन पर सारी सूचना दे दी। उसने हॉçस्पटल में पहले से ही सभी डॉक्टरों को कह दिया था। नीलू को लेकर जैसे ही सभी हॉçस्पटल पहुंचे, वो अधिकारी भी वहीं आ गए। इमरजेंसी में ही नीलू का चैकअप हुआ और वहीं उसके ग्लूकोज भी चढ़ा दिया। ब्लड रिपोर्ट देखकर डॉक्टर ने कुछ इंजेक्शन भी जल्दी लाकर देने को कहा और इंजेक्शन नीलू को लगाने के बाद दुबारा उसका ब्लड चैक-अप करवाया। अब तक नीलू को बेहोश हुए तीन घंटे हो चुके थे, पर उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। इधर नीलू का चेहरा देख-देखकर वंदना की आंखें आंसुओं से भरी हुई थी। दादी मां ने वंदना को नहीं संभालती, तो शायद वह वहीं रो-रोकर अपना बुरा हाल कर लेती। सुखीजा जी अभी भी वहीं बाबा के साथ खड़े थे और सुनील भाग-भागकर कभी किसी डॉक्टर के पास तो कभी किसी मेडिकल स्टोर पर दवाईयां लाने भाग रहा था। सुुनील के परिचित अधिकारी भी वहीं खड़े थे। उन्होंने ही हॉçस्पटल के सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर को भी वहीं बुलवा लिया। डॉक्टर साहब ने नीलू की आंखों की पलकें उठाकर कुछ देखा। फिर ब्लड रिपोर्ट मांगी और उन्हीं अधिकारी के साथ कुछ बतियाते हुए बाहर चले गए। उन्होंने बाहर से दवाइयां लेकर आ रहे सुनील को इशारा करके वहां बुलाया। `देखो सुनील, बच्चे का यहां इलाज भले ही करवा लो, फायदा कुछ नहीं होना। हम दो-चार दिन तक जरूर एडमिट कर लेंगे, लेकिन बीमारी क्या है, इसका पता यहां नहीं चल सकता। जितनी देर इंजेक्शन का असर रहेगा, ब्लड सप्लाई होता रहेगा। असर खत्म होते ही, सप्लाई भी बंद हो जाती है। बच्चे को बचाना चाहते हो, आज रात तक उसे मुंबई ले जाओ। तुम्हारे कहने पर ही मैं मुंबई रैफर करूंगा।´ डॉक्टर ने साफ शब्दों में कहते हुए मुंबई के सबसे बडे़ हॉçस्पटल में अपने परिचित डॉक्टर का नाम व नंबर भी सुनील को बता दिया।
सुनील ने इमरजेंसी वार्ड, जहां नीलू का इलाज चल रहा था और बाकी सभी बैठे थे, पहुंचकर लड़खड़ाती आवाज में कहा- `नीलू को मुंबई ले जाना पड़ेगा´। सबके पैरों तले जैसे जमीन ही खिसक गई, अभी चार घंटे पहले तक जो पंछी सभी को अपनी चहल-पहल से उलझाए रखता था, वह आज शांत-स्थिर, चुपचाप बिस्तर पर पड़ा है। आखिर चार घंटे में ऐसा क्या हुआ कि उनका नीलाक्ष जिंदगी और मौत से जूझ रहा है। करीब डेढ़ घंटे बाद मुंबई की फ्लाइट थी। सुनील ने अपने एक मित्र को फोन कर टिकट बुक करने को कह दिया था। `बेटा फ्लाइट कितने बजे की है। तुमने बुक तो करवा दी।´- सुनील के बाबा ने आकर पूछा। मां ने वंदना को अभी भी संभाल रखा था। ´बाबा जल्दी करो। एयरपोर्ट तो चलते हैं, वहीं से टिकट कन्फर्म कर लेंगे।´ सुखीजा जी अभी भी वहीं खड़े थे। सुनील ने नीलू के बैड की तरफ जाते हुए कहा। नीलू को गोद में उठाकर जैसे ही सुनील चलने लगा, उसकी आंखों से झर-झर आंसू बहने लगे। उसे वही पुराने दिन याद आने लग गए, जब नीलू दो-एक महीने का था। सुनील उसे हाथों से उठाकर अपनी छाती से लगा लेता, तो वह कुछ बोल तो पाता नहीं था, पर अपनी गर्दन और हाथ इस तरह हिलाता था, कि सुनील को पितृत्व उमड़ पड़ता था। उस समय उसकी केवल यही कामना होती कि नीलू बस उसी की ही छाती से चिपका रहे। उसने नीलू के लिए क्या-क्या सपने संजोए थे, सभी एक-एक कर याद आ रहे थे। बाबा ने आकर सुनील के कंधे पर हाथ रखा, तो वह फिर वर्तमान में लौटा। जब सभी लोग कार की तरफ जाने लगे, तो वंदना का ध्यान अचानक नीलू की कमर की तरफ गया। पीले रंग की धारीदार टी-शर्ट में लाल रंग कहां से आया। वंदना ने जल्दी से उसकी टी-शर्ट ऊपर की तो, एक गहरा घाव दिखाई दिया और उस पर चारों तरफ लगी हुई मिट्टी। वंदना के आंसू एक बार किसी तरह रुके थे, पर अब नीलू की यह चोट देखकर फिर उसकी रुलाई फूट पड़ी। ´प्लीज वंदना, अपने-आप को संभालो। अभी कुछ नहीं हुआ। हम चल रहे हैं न।´- सुनील ने वंदना को संभालते हुए कार में बिठाया।
उधर अपने घर पर विक्की ने मम्मी को बहादुरी दिखाते हुए कहा- `मम्मी आज मैंने नीलू की ये पिटाई की कि वो तो याद रखेगा।´ रेखा ने उसे थोड़ा सा डांट दिया बस। लेकिन दो घंटे में ही पूरे मौहल्ले में खबर फैल गई कि शर्मा जी का पोता अचानक बेहोश हो गया और उसे हॉçस्पटल ले गए हैं। रेखा का माथा ठनक गया। उसने विक्की को बुलाकर अच्छी तरह पिटाई करके पूछा तो उसने बताया कि नीलू के नंबर उससे ’यादा आए हैं। इसी बात पर नीलू उसे बार-बार चिढ़ा रहा था, तो दोनों आपस में गुत्थम-गुत्था हो गए। विक्की नीलू से भारी पड़ता है, इसलिए नीलू उसे गाली देकर भागने लगा। विक्की ने एक पत्थर उठाकर भागते नीलू को मारा, जो उसकी पीठ पर लगा। नीलू दर्द के मारे वहीं बैठ गया, तो विक्की दूर भागकर एक दीवार के पीछे çछप गया। थोड़ी देर में नीलू भी उठकर चला गया और विक्की भी अपने घर आ गया। रेखा ने वंदना को मोबाइल किया तो सुनील ने ही उठाया। वे अभी कार में एयरपोर्ट ही जा रहे थे- `नहीं हालत नाजुक है। मुंबई ले जा रहे हैं।´ रेखा ने सारी बात सुनील को बताई और फ्लाइट का टाइम पूछा। `नहीं जो हो गया, सो हो गया। आप कष्ट ना करें। दो-चार दिन में हम वापस आ जाएंगे।´ लेकिन रेखा से रहा नहीं गया। विक्की के दो-चार थप्पड़ और मारकर अपना गुस्सा उतारा। एयरपोर्ट सात-एक किलोमीटर था। रेखा ने कार निकाली और एयरपोर्ट की ओर चली।
सुनील ने पूरे रास्ते नीलू को अपनी छाती से ही चिपकाए रखा। एयरपोर्ट में घुसते ही बाबा ने मेडिकल टीम को देखकर सुनील से नीलू का नॉर्मल चैकअप फिर करवाने को कहा। सुखीजा जी टिकट कन्फर्म करने चले गए और बाकी सभी मेडिकल टीम के पास आ गए। ´क्या हुआ बच्चे को´- वहां बैठे एक डॉक्टर ने नीलू की हालत देखते हुए कहा। ´इसे जल्दी बैड पर लेटाओ´ - डॉक्टर ने सुनील की गोद से ही नीलू की नाड़ी देखकर हड़बड़ाते हुए कहा। नीलू की आंखें खोलकर डॉक्टर ने टॉर्च से चैक किया। एक बार फिर अपने मन को समझाने के लिए दुबारा नाड़ी चैक की। ´क्या हुआ डॉक्टर´- नीलू से खड़ा नहीं हुआ जा रहा था। ´ही इज डैड´- सुनते ही सुनील को लगा जैसे उसकी दुनिया यहीं खत्म हो गई। दादी मां भी बदहवास सी नीलू के बैड पर आकर गिरकर रोने लगी। इतने में रेखा भी वहां आ गई। `मुझे माफ कर दो´- बाबा के पैरों में पड़कर रेखा ने कहा। बाबा को सुनील ने सारी बात बता दी थी। उन्होंने रेखा को उठाया। बाबा कभी नीलू की दादी, तो कभी सुनील को संभाल रहे थे। करुण रुदन देख रेखा की आंखें भी भर आईं। पर वंदना चुपचाप वहीं खड़ी थी। इतनी देर से जो आंसू बार-बार गिर रहे थे। बिल्कुल शांत हो गए। उसे मालूम था नीलू कहीं नहीं जा सकता। अभी सुबह ही तो उसने वंदना से कहा था- `जल्दी नहीं आऊंगा तो कहां जाऊंगा, तुम्हारे पास तो आना ही पड़ेगा।´
अरे बहु क्या हुआ नीलू का- सासु मां ने घर पहुंचते ही वंदना से पूछ लिया। आपका पोता है, छोटी-मोटी पोजिशन पर थोड़े ही आएगा, स्कूल में फस्र्ट आया है- वंदना ने साथ ही साथ मिठाई की मांग भी कर दी और रसोई मेंे अपने काम में लग गई। सुनील को भी स्पष्ट हिदायत दे दी गई थी कि शाम को मिठाई के साथ ही घर आना। खाना खाकर सुनील भी ऑफिस के लिए निकल गया। वंदना अभी रसोई में ही थी कि भागता हुआ नीलू आ गया। `मम्मा भूख लगी है।´ अरे कहां मिट्टी में लोट-पीटकर आया है- नीलू के गंदे और मिट्टी में भरे कपड़े देखकर वंदना ने उसे डांट दिया- कौन कहेगा तेरे को दो घंटे पहले नहाया है। हाथ-पैर धोकर आया नीलू, तो उसे खाना मिला। आधा खाकर नीलू ने थाली बीच में ही छोड़ दी। चुपचाप पूरा खाना खा- वंदना ने पहले ही टोक दिया। `मम्मा प्लीज मेरे सर में दर्द हो रहा है।´ नाटक मत कर, खाना खत्म कर तभी खड़ा होना नहीं तो बैठा रह- वंदना ने फिर डांट दिया। नीलू ने थोड़ा सा और खाया। वंदना रसोई में बर्तन साफ कर रही थी। नीलू थाली उठाकर वाशबेसिन में रखने लगा। वाशबेसिन थोड़ा ऊंचा था और नीलू का हाथ वहां तक पहुंचा नहीं, इसलिए ऊपर-नीचे होते-होते नीलू का माथा वंदना के हाथों को छू गया। वंदना का कलेजा ही हिल गया- हाय नीलू तेरा माथा इतना गर्म कैसे है। दुबारा छूकर देखा और उसे गोद में उठाकर सासु जी के पास ले आई - मम्मी जी देखो इसे कितना तेज बुखार है। सासु ने भी वंदना को ही डांटा- तुझे कितनी बार कहा है, बच्चे को धूप में मत खेलने दिया कर। पर मेरी यहां कोई सुने तो ही। जा दवाईयों के डिब्बे में से बुखार की गोली निकाल कर दे। मेरा लाडला बेटा कितना गर्म हो रहा है। वंदना चुपचाप गई और एक टेबलेट और पानी का गिलास ले आई- ले नीलू, खड़ा हो। पर नीलू चुपचाप सोया रहा। दादी मां धीरे-धीरे नीलू के माथे पर हाथ फेर रही थी। शायद इसीलिए नीलू को नींद आ गई- दादी ने यह सोचकर उसे हिलाया। नीलू ने जब कोई हरकत नहीं की, तो दादी का पूरा शरीर कांप उठा, जैसे कोई करंट लग गया हो। वंदना भी हिल गई- मम्मी जी नीलू को क्या हो गया। मैं उनको मोबाइल कर देती हूं। अभी रास्ते में ही होंगे। उधर नीलू के बाबा (दादा) जो दो घर दूर अपनी मंडली के साथ ताश खेल रहे थे, उनको भी वंदना भागकर कह आई थी। वे भी तेज कदमों से घर की ओर भागे। रास्ते में सुखीजा जी, जो कार से ऑफिस जा रहे थे, बाबा को भागते हुए देखकर बोले- अरे शर्मा जी नमस्कार, कहां भागे जा रहे हैं। बाबा ने नमस्कार कहते हुए नीलू के बेहोश होने के बारे में बताया। सुखीजा जी भी कार को रोककर घर में गए, तो देखा नीलू का चेहरा बिलकुल सूख सा गया था। हाथ लगाकर देखा तो बहुत तेज बुखार। बहु जोशी जी को फोन करके पूछो çक्लनिक पर हैं या नहीं, नीलू को फौरन लेकर चलना पड़ेगा- बाबा ने वंदना को आवाज लगाई। वंदना ने शायद आवाज सुनी नहीं। सुखीजा जी ने अपने मोबाइल से ही फोन मिलाया- तो मालूम चला कि डॉक्टर जोशी शाम को वापिस आएंगे, अभी दिल्ली गए हैं, एक कॉन्फे्रंस में भाग लेने। हे बालाजी महाराज, मेरे नीलू को सही कर दो। इसी दिवाली सब आपके दर्शन करने आएंगे- उधर वंदना मंदिर के आगे आंख बंद कर प्रार्थना कर रही थी।
सुखीजा जी ने बाहर जाकर कार स्टार्ट कर ली और अंदर आवाज दी। बाबा ने नीलू को गोद में उठाया। वंदना ने भी घर जल्दी से बंद कर दिया। `सरकारी हॉçस्पटल में कोई केयर नहीं होती, पास में ही बड़ा हॉçस्पटल है, अच्छे डॉक्टर हैं, वहीं चलते हैं` - सुखीजा जी ने सलाह दी। हॉçस्पटल पहुंचे तो डॉक्टर ने नाड़ी चैक की और एडमिट करने को कहा। पांच मिनट बाद ही दो डॉक्टर और पहुंचे। नीलू की आंख, जीभ चैक की। ब्लड का सैम्पल की जांच कर उसे सरकारी हॉçस्पटल रैफर कर दिया। बाबा ने पूछा- क्या हुआ है, क्या आपके यहां इलाज नहीं हो सकता, कुछ तो दवाई, इंजेक्शन दो, बाद में ले जाएंगे सरकारी हॉçस्पटल में भी। डॉक्टर ने साफ बता दिया कि ब्लड बनना बंद हो गया है, देर ना करें। इतने में सुनील भी हॉçस्पटल पहुंच गया। उसे वंदना ने मोबाइल कर नीलू के हॉçस्पटल में एडमिट होने के बारे में बता दिया था। नीलू के चेहरे को देखकर एक बार तो सुनील की आंखों से आंसू निकलने ही वाले थे, पर उसने शायद यही सोचकर आंसुओं को रोका कि मेरे से बुरी हालत तो वंदना, मां और बाबा की है, फिर भी उन्होंने अपने आपको संभाल रखा है।
सरकारी हॉçस्पटल में एक अधिकारी सुनील का परिचित था। सुनील ने उसे फोन पर सारी सूचना दे दी। उसने हॉçस्पटल में पहले से ही सभी डॉक्टरों को कह दिया था। नीलू को लेकर जैसे ही सभी हॉçस्पटल पहुंचे, वो अधिकारी भी वहीं आ गए। इमरजेंसी में ही नीलू का चैकअप हुआ और वहीं उसके ग्लूकोज भी चढ़ा दिया। ब्लड रिपोर्ट देखकर डॉक्टर ने कुछ इंजेक्शन भी जल्दी लाकर देने को कहा और इंजेक्शन नीलू को लगाने के बाद दुबारा उसका ब्लड चैक-अप करवाया। अब तक नीलू को बेहोश हुए तीन घंटे हो चुके थे, पर उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। इधर नीलू का चेहरा देख-देखकर वंदना की आंखें आंसुओं से भरी हुई थी। दादी मां ने वंदना को नहीं संभालती, तो शायद वह वहीं रो-रोकर अपना बुरा हाल कर लेती। सुखीजा जी अभी भी वहीं बाबा के साथ खड़े थे और सुनील भाग-भागकर कभी किसी डॉक्टर के पास तो कभी किसी मेडिकल स्टोर पर दवाईयां लाने भाग रहा था। सुुनील के परिचित अधिकारी भी वहीं खड़े थे। उन्होंने ही हॉçस्पटल के सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर को भी वहीं बुलवा लिया। डॉक्टर साहब ने नीलू की आंखों की पलकें उठाकर कुछ देखा। फिर ब्लड रिपोर्ट मांगी और उन्हीं अधिकारी के साथ कुछ बतियाते हुए बाहर चले गए। उन्होंने बाहर से दवाइयां लेकर आ रहे सुनील को इशारा करके वहां बुलाया। `देखो सुनील, बच्चे का यहां इलाज भले ही करवा लो, फायदा कुछ नहीं होना। हम दो-चार दिन तक जरूर एडमिट कर लेंगे, लेकिन बीमारी क्या है, इसका पता यहां नहीं चल सकता। जितनी देर इंजेक्शन का असर रहेगा, ब्लड सप्लाई होता रहेगा। असर खत्म होते ही, सप्लाई भी बंद हो जाती है। बच्चे को बचाना चाहते हो, आज रात तक उसे मुंबई ले जाओ। तुम्हारे कहने पर ही मैं मुंबई रैफर करूंगा।´ डॉक्टर ने साफ शब्दों में कहते हुए मुंबई के सबसे बडे़ हॉçस्पटल में अपने परिचित डॉक्टर का नाम व नंबर भी सुनील को बता दिया।
सुनील ने इमरजेंसी वार्ड, जहां नीलू का इलाज चल रहा था और बाकी सभी बैठे थे, पहुंचकर लड़खड़ाती आवाज में कहा- `नीलू को मुंबई ले जाना पड़ेगा´। सबके पैरों तले जैसे जमीन ही खिसक गई, अभी चार घंटे पहले तक जो पंछी सभी को अपनी चहल-पहल से उलझाए रखता था, वह आज शांत-स्थिर, चुपचाप बिस्तर पर पड़ा है। आखिर चार घंटे में ऐसा क्या हुआ कि उनका नीलाक्ष जिंदगी और मौत से जूझ रहा है। करीब डेढ़ घंटे बाद मुंबई की फ्लाइट थी। सुनील ने अपने एक मित्र को फोन कर टिकट बुक करने को कह दिया था। `बेटा फ्लाइट कितने बजे की है। तुमने बुक तो करवा दी।´- सुनील के बाबा ने आकर पूछा। मां ने वंदना को अभी भी संभाल रखा था। ´बाबा जल्दी करो। एयरपोर्ट तो चलते हैं, वहीं से टिकट कन्फर्म कर लेंगे।´ सुखीजा जी अभी भी वहीं खड़े थे। सुनील ने नीलू के बैड की तरफ जाते हुए कहा। नीलू को गोद में उठाकर जैसे ही सुनील चलने लगा, उसकी आंखों से झर-झर आंसू बहने लगे। उसे वही पुराने दिन याद आने लग गए, जब नीलू दो-एक महीने का था। सुनील उसे हाथों से उठाकर अपनी छाती से लगा लेता, तो वह कुछ बोल तो पाता नहीं था, पर अपनी गर्दन और हाथ इस तरह हिलाता था, कि सुनील को पितृत्व उमड़ पड़ता था। उस समय उसकी केवल यही कामना होती कि नीलू बस उसी की ही छाती से चिपका रहे। उसने नीलू के लिए क्या-क्या सपने संजोए थे, सभी एक-एक कर याद आ रहे थे। बाबा ने आकर सुनील के कंधे पर हाथ रखा, तो वह फिर वर्तमान में लौटा। जब सभी लोग कार की तरफ जाने लगे, तो वंदना का ध्यान अचानक नीलू की कमर की तरफ गया। पीले रंग की धारीदार टी-शर्ट में लाल रंग कहां से आया। वंदना ने जल्दी से उसकी टी-शर्ट ऊपर की तो, एक गहरा घाव दिखाई दिया और उस पर चारों तरफ लगी हुई मिट्टी। वंदना के आंसू एक बार किसी तरह रुके थे, पर अब नीलू की यह चोट देखकर फिर उसकी रुलाई फूट पड़ी। ´प्लीज वंदना, अपने-आप को संभालो। अभी कुछ नहीं हुआ। हम चल रहे हैं न।´- सुनील ने वंदना को संभालते हुए कार में बिठाया।
उधर अपने घर पर विक्की ने मम्मी को बहादुरी दिखाते हुए कहा- `मम्मी आज मैंने नीलू की ये पिटाई की कि वो तो याद रखेगा।´ रेखा ने उसे थोड़ा सा डांट दिया बस। लेकिन दो घंटे में ही पूरे मौहल्ले में खबर फैल गई कि शर्मा जी का पोता अचानक बेहोश हो गया और उसे हॉçस्पटल ले गए हैं। रेखा का माथा ठनक गया। उसने विक्की को बुलाकर अच्छी तरह पिटाई करके पूछा तो उसने बताया कि नीलू के नंबर उससे ’यादा आए हैं। इसी बात पर नीलू उसे बार-बार चिढ़ा रहा था, तो दोनों आपस में गुत्थम-गुत्था हो गए। विक्की नीलू से भारी पड़ता है, इसलिए नीलू उसे गाली देकर भागने लगा। विक्की ने एक पत्थर उठाकर भागते नीलू को मारा, जो उसकी पीठ पर लगा। नीलू दर्द के मारे वहीं बैठ गया, तो विक्की दूर भागकर एक दीवार के पीछे çछप गया। थोड़ी देर में नीलू भी उठकर चला गया और विक्की भी अपने घर आ गया। रेखा ने वंदना को मोबाइल किया तो सुनील ने ही उठाया। वे अभी कार में एयरपोर्ट ही जा रहे थे- `नहीं हालत नाजुक है। मुंबई ले जा रहे हैं।´ रेखा ने सारी बात सुनील को बताई और फ्लाइट का टाइम पूछा। `नहीं जो हो गया, सो हो गया। आप कष्ट ना करें। दो-चार दिन में हम वापस आ जाएंगे।´ लेकिन रेखा से रहा नहीं गया। विक्की के दो-चार थप्पड़ और मारकर अपना गुस्सा उतारा। एयरपोर्ट सात-एक किलोमीटर था। रेखा ने कार निकाली और एयरपोर्ट की ओर चली।
सुनील ने पूरे रास्ते नीलू को अपनी छाती से ही चिपकाए रखा। एयरपोर्ट में घुसते ही बाबा ने मेडिकल टीम को देखकर सुनील से नीलू का नॉर्मल चैकअप फिर करवाने को कहा। सुखीजा जी टिकट कन्फर्म करने चले गए और बाकी सभी मेडिकल टीम के पास आ गए। ´क्या हुआ बच्चे को´- वहां बैठे एक डॉक्टर ने नीलू की हालत देखते हुए कहा। ´इसे जल्दी बैड पर लेटाओ´ - डॉक्टर ने सुनील की गोद से ही नीलू की नाड़ी देखकर हड़बड़ाते हुए कहा। नीलू की आंखें खोलकर डॉक्टर ने टॉर्च से चैक किया। एक बार फिर अपने मन को समझाने के लिए दुबारा नाड़ी चैक की। ´क्या हुआ डॉक्टर´- नीलू से खड़ा नहीं हुआ जा रहा था। ´ही इज डैड´- सुनते ही सुनील को लगा जैसे उसकी दुनिया यहीं खत्म हो गई। दादी मां भी बदहवास सी नीलू के बैड पर आकर गिरकर रोने लगी। इतने में रेखा भी वहां आ गई। `मुझे माफ कर दो´- बाबा के पैरों में पड़कर रेखा ने कहा। बाबा को सुनील ने सारी बात बता दी थी। उन्होंने रेखा को उठाया। बाबा कभी नीलू की दादी, तो कभी सुनील को संभाल रहे थे। करुण रुदन देख रेखा की आंखें भी भर आईं। पर वंदना चुपचाप वहीं खड़ी थी। इतनी देर से जो आंसू बार-बार गिर रहे थे। बिल्कुल शांत हो गए। उसे मालूम था नीलू कहीं नहीं जा सकता। अभी सुबह ही तो उसने वंदना से कहा था- `जल्दी नहीं आऊंगा तो कहां जाऊंगा, तुम्हारे पास तो आना ही पड़ेगा।´